केवल तुम्हें ही लिखता हूँ
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सुबह से हीदिल के ज़ज़्बातों को
जोर-जोर से बोल - बोलकर
पढता हूँ और
रात ढलने तक
अपने वज़ूद की सियाही से
अपने ही दिल के
कोरे पन्नों पर
केवल तुम्हें लिखता हूँ .
कुछ साधारण से
शब्दों को जोड़ -जोड़कर
अपनी अभिव्यक्ति में
केवल तुम्हें ही रचता हु
इस चाहत के साथ की
एक दिन स्वाति की
बून्द बन तुझमे समां
मोती बन जाऊँगा ..
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