Sunday, 20 May 2018

केवल तुम्हें ही लिखता हूँ



केवल तुम्हें ही लिखता हूँ
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सुबह से ही
दिल के ज़ज़्बातों को
जोर-जोर से बोल - बोलकर
पढता हूँ और
रात ढलने तक
अपने वज़ूद की सियाही से
अपने ही दिल के
कोरे पन्नों पर
केवल तुम्हें लिखता हूँ .
कुछ साधारण से
शब्दों को जोड़ -जोड़कर
अपनी अभिव्यक्ति में
केवल तुम्हें ही रचता हु
इस चाहत के साथ की
एक दिन स्वाति की
बून्द बन तुझमे समां
मोती बन जाऊँगा ..  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !