Tuesday, 8 May 2018

प्रेम की धुन गुनगुनाती है



प्रेम की धुन गुनगुनाती है 
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अक्सर वो मुझसे 
दूर जाकर , 
अपनी सुरीली 
आवाज़ में प्रेम
की धुन सुनाती है,
और नित नए 
कुछ ख्वाब मेरी ही 
आँखों में बुनती है,
और अपनी सांसो में 
मुझे बांधकर यंहा मुझे
अकेला छोड़ खुद  
मुझसे दूर चली जाती है ,
उफ्फ़! ये ज़िन्दगी 
कैसा असर कर जाती है..
पाटता हु जोर जितनी दूरियां
उससे एक कदम और 
दूर वो चली जाती है,
एक दिन बैठा कर 
पास मेरे मैं उसको 
पूछना चाहता हु, 
फिर किन्यु वो अक्सर मुझसे 
दूर जाकर अपनी सुरीली 
आवाज़ में मेरे ही प्रेम
की धुन मुझे सुनाती है,

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !