Sunday 22 March 2020

तुम्हारा दूर जाना !


तुम्हारा दूर जाना !

तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
धधकती हुई आग में एकाएक 
ऊपर से पानी पड़ जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
हँसते हँसते अचानक से अश्कों 
का बेबात छलक आना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
चमकते धधकते सूरज के आगे 
अचानक से काली काली बदलियों  
का छा जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
गले से निकलते सुरीले से गीत 
का दूसरे ही पल में जैसे बेसुरा 
सा हो जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
सुबह सुबह का सबसे हसीं सपना 
अधूरा रह जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
किसी कश्ती का किनारे पर आकर 
अचानक से डूब जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे
नूर से भरी मेरी आँखों से बरबस 
ही अश्कों का बरस जाना !

Saturday 21 March 2020

जीने की आरज़ू !


जीने की आरज़ू !

तुम्हारी चुप्पी जैसे 
मेरे दिल की धड़कन 
रुक गयी हो !
तुम्हारी बेरुखी जैसे 
सूरज को ग्रहण लग 
गया हो !
तुम्हारी नाराज़गी जैसे 
मेरे मुँह का स्वाद कसैला 
हो गया हो !
तुम्हारी याद आयी तो 
जैसे एक एहसास हुआ 
की अब सब कुछ ठीक 
हो गया हो !
तुम्हारी प्यास जैसे 
मेरे जीने की आरज़ू 
सलामत हो !    
     

Friday 20 March 2020

तुम्हारा कहा !


तुम्हारा कहा !

तुम ने कहा और मैंने मान लिया 
कभी पलट कर नहीं पूछा कि क्यों 
कभी कारण भी नहीं जानना चाहा
लगा कि तुमने कहा तो सही ही होगा 
तुम कब गलत होती हो मेरी नज़र में
तुम्हारा कहा इसलिए नहीं माना कि
मैंने भी शायद वही चाहा था बल्कि 
इसलिए माना ताकि मेरे मानने से 
मैं तुम्हे प्रसन्नचित देख सकता हूँ 
एक बार सोचना कि जैसे मैंने माना है  
तुम्हारा हर एक कहा अब तक सदा 
क्या तुम भी कभी मेरा कहा बिना 
किसी क्यों के केवल मेरी ख़ुशी के 
लिए मानना सिख पाओगी !  
    

Thursday 19 March 2020

तरंगित मौन !


तरंगित मौन !

जब जब दूर बैठा मैं 
अपनी बंद आँखों से 
भी निहारता हूँ तुम्हे 
तभी हमारे बीच का 
मौन शांत प्रकृति की 
ध्वनियों की तरह ही 
तरंगित हो उठता है 
विचलित नहीं करता  
वो बल्कि उस मौन को
वो मुखर कर देता है 
और शब्दों से भरा वो 
आकाश मुझे घेर लेता है 
जो तुम्हारे होने की ही 
तो अनुभूति देता है 
क्योंकि उस आकाश में 
भरा जल तुम्हारे ही 
अनुराग का प्रतीक तो है !  


Wednesday 18 March 2020

महसूसियत !


महसूसियत !

ज़िन्दगी करीब 
महसूस होती है 
जब तुम पास मेरे 
होते हो साँस लेती है 
देह मेरी जब तुम मेरे 
नज़दीक होते हो ये 
जानते हुए भी फिर क्यों 
तुम रोज रोज मुझ से यूँ 
दूर चले जाते हो कि बुलाऊँ 
तो आवाज़ मेरी वापस 
मेरे पास लौट आती है
हाथ बढ़ाऊँ तो खाली
हथेली लौट आती है 
मेरी सी हो जाओ ना 
अब तो तुम फिर मेरे 
ही इर्द गिर्द रहो तुम
कुछ ऐसे ही मेरी सी 
हो कर मुझे महसूस
होती रहो ना तुम ! 

Tuesday 17 March 2020

भावों का हरापन !


भावों का हरापन !

कुछ भावों को मनाकर 
उनमें सहेजा था हरापन 
जो बीते सावन में ऊगा था
सर्दियों की गुनगुनी धुप 
मैंने सिरहाने रख ली थी 
बसंत की पिली सरसों को 
भी छुपा कर रख ली थी 
और पेड़ों से झरते पत्तों 
को समेट कर रख ली थी 
अब वो भाव अंगड़ाई लेने 
लग गए है कल को वो गर  
मेरे आखरों में उतरने लगे  
तो तुम पढ़ने आओगे ना !

Monday 16 March 2020

सिहरना प्रेम में !


सिहरना प्रेम में !

तुम्हारी आँखों का स्पर्श 
लिपटता है मेरी देह से 
तब मैं काँप जाती हूँ 
फिर सोचती हूँ मैं 
कितना सहज होता है 
सिहरना प्रेम में जैसे 
गर्मी की अलसायी 
दोपहरी में थककर
लेटी नदी पर दरख्तों 
ने साज़िश रच कर 
एक किरण और मुट्ठी
भर हवा बिखेर दी हो 
फिर देखो जादू नदी का  
और सुनो कल-कल बहने 
की उसकी सुमधुर आवाज़ !

Sunday 15 March 2020

छुवन का नशा !


छुवन का नशा ! 

बादलों की ओट से 
झिलमिलाते सितारों  
के निचे रात के दूसरे 
पहर में मेरे हाथों को 
थामे हुए तुम्हारे हाथ 
तुम्हारी छुवन के नशे 
में रोम रोम खिलता 
मेरे जिस्म का पोर पोर 
उस पर मिटटी का लेप 
और बोसों का काफिला
गिरफ्त में मेरी सांसें 
और सुकून आहों का 
बहुत जालिम हो तुम !

Saturday 14 March 2020

गोलार्द्ध की मियाद !


गोलार्द्ध की मियाद !

ये लम्बी रातें
और इनमें होती 
वो बेशुमार बातें
और दोनों को तकते 
वो जलते अलाव आज 
तुम्हे बुला रहे है तुम 
चली आओ ना 
कि तुम बिन ये 
सलवटें तड़प रही है
और तकिये के लिहाफ 
सांसें लौटा रहे है 
और इत्र की खुश्बू
मचल रही है उस पर 
वो ऑलिव आयल 
बिफर रहा है तुम 
आकर पोरों में सुलह 
करा दो ना और 
गोलार्द्ध की मियाद 
बता दो ना !

Friday 13 March 2020

दर्द का हलाहल !


दर्द का हलाहल ! 

मैंने सोचा कि पी लूँ 
ये सारा का सारा दर्द 
कहीं तुम ना पी लो 
पर क्या पता है तुम्हे 
फिर मेरा मन भी ठीक  
वैसे ही पिघलता रहा 
जैसे शमा पिघलती है 
जैसे शिव ने पिया था 
हलाहल तो कंठ हुए थे 
उन के भी नील कंठ 
पर मैं तो ठहरा महज़
एक इंसान उस हलाहल 
ने तोडा और मोड़ा है 
मेरे अंदर के एहसासों को 
क्या तुम उन एहसासों को
फिर से सजा पाओगी बोलो !  

Thursday 12 March 2020

प्यार का पंचांग !


प्यार का पंचांग ! 

सुनो 
तुम से दूर रहकर भी 
तुम्हारे समर्पण को महसूस 
करना सुखद एहसास देता है ;
जैसे 
आषाढ़ की बदली में 
छुपकर भी सूरज गर्माहट 
और रौशनी जरूर देता है ;
पर 
मेरी हो कर भी 
तुम्हारा मुझ से दूर रहना 
मुझे यूँ लगता है !
मानो
जेठ की दोपहरी में 
सर पर तैनात सूरज की 
जला देने वाली तपन ;
क्या 
प्यार के पंचांग में
जेठ आसाढ़ के बाद है ! 

Wednesday 11 March 2020

मैं इंसान हूँ !


मैं इंसान हूँ ! 

मुझे यूँ कोई फरिश्ता 
ना समझ तू ;
मैं भी बस एक 
इंसान ही हूँ ;
मुझे बस एक इंसान 
ही रहने दे तू ;
यूँ फ़रिश्ते के नाम पर 
अपने ज़ज़्बात और एहसास 
खोना गवारा नहीं मुझे  
ये याद रख तूं ;
मुझ में ये दर्द ये पीड़ा 
और ये आक्रोश यूँ ही 
रहने दे तू ; 
मुझे यूँ कोई फरिश्ता 
ना समझ तू ;
मुझे बस एक इंसान 
ही रहने दे तू !

Tuesday 10 March 2020

उमंगो का फागुन !


उमंगो का फागुन !

प्रभातकाल के चित्‍ताकर्षक 
दिनकर सा ही तो है मेरा प्रेम 
जो आकांक्षा के अभीष्ट का 
रक्तवर्ण लिये निकलता है 
प्रतिदिन तुम्हारे अस्तित्व के 
उस असीमित आसमान पर
अपनी धरा को सदैव हर हरी  
रखने की ही अभिलाषा लिए 
रंग बिरंगा और गाढ़ा है 
मेरे उमंगो का ये फागुन 
तभी तो इसने अभी तक नहीं 
चढ़ने दिया कोई और रंग तुम पर 
और जो रंग उतर जाए धोने से 
वह रंग भी भला कोई रंग होता है  
मैं तो रंगूँगा तुम्हें अपने प्रेम के सुर्ख 
रक्तवर्ण से जो कभी उतरेगा नहीं
फिर इसी रक्तवर्ण के रंग में  लिपट कर 
तुम आना मेरे द्वार और इसी सुर्ख रक्तवर्ण 
में लिपट कर जायेंगे दोनों साथ एक जोड़े में 
ये रंग जो जन्मों तक अक्षुण्ण रहेगा 
और रंगो के अनगिनत समन्दर समाए 
होंगे मेरी उस छुअन में जो तुम अपने 
कपोलों पर हर दिन महसूस करोगी 
तब सैंकड़ो इंद्रधनुष सिमट आऐंगे 
तुम्हारी कमनीय काया पर और फिर  
मैं बजाऊँगा उस दिन चंग और तुम 
गाना अपने प्रेम का अमर फाग 
लोग पूछे तो गर्व से कहना उस दिन 
अपने प्रेम का रंग आज डाला है 
मेरे पिय ने मुझ पर ! 

Monday 9 March 2020

अहम् का दहन !


अहम् का दहन ! 

आओ हम तुम करे दहन 
आज अपने अपने अहम् का 
जैसे भक्त प्रह्लाद ने किया था 
अपनी बुआ होलिका के अहम् का  
उसी अग्नि कुंड में जिसमे 
उसने अपने अहम् का चादर ओढ़ 
कर प्रह्लाद को जलाने का  सोचा था 
हमें बस करना होगा विश्वास 
वैसा ही जैसा किया था प्रह्लाद ने 
अपने भगवान नरसिंघ पर 
आओ हम तुम करे दहन 
आज अपने अपने अहम् का 
जैसे भक्त प्रह्लाद ने किया था 
अपनी बुआ होलिका के अहम् का !

Sunday 8 March 2020

हाँ ! स्त्री हूँ मै !


हाँ ! स्त्री हूँ मै !
ईश्वर की उत्कृष्ट कृति हूँ मै
कभी माँ तो कभी पत्नी हूँ मैं 
कभी बहन तो कभी बेटी हूँ मैं 
कभी जन्मती तो कभी जन्माती हूँ मैं ,
कभी हंसी तो कभी ख़ुशी हूँ मैं .
कभी सुबह तो कभी शाम हूँ मैं,
कभी धुप तो कभी छांव हूँ मैं.
कभी नर्म तो कभी गर्म हूँ मैं ,
कभी कोमल तो कभी कठोर हूँ मैं .
कभी कली तो कभी फूल हूँ मैं 
कभी चक्षु तो कभी अश्रु हूँ मैं
कभी ईश की हस्तलिप हूँ मैं
कभी ईश की प्रतिलिपी हूँ मैं  
ईश्वर की उत्कृष्ट कृति हूँ मै
हाँ ! स्त्री हूँ मै !

Saturday 7 March 2020

तुम मेरी हो ?


तुम मेरी हो ?

मैं जब जब खुद से 
खफा होता हूँ           
मैं तब तब तुम से 
दूर चला जाता हूँ 
पर फिर भी तुम से 
दूर रह कहाँ पाता हूँ 
पर जब जब तुम मेरा 
ये दिल दुखाती हो 
मैं तब तब खुद से 
खफा हो जाता हूँ 
चंद शब्दों में मैं तुम्हे 
कैसे समझाऊं कि
क्या क्या है इस दिल 
में मेरे तुम्हारे लिए 
क्योंकि शब्द तो होते है 
पर भाव कहाँ से लाऊँ 
मैं तुम्हारे बिना और 
मैंने मान लिया जो कुछ है  
वप सब सब तेरा ही है 
पर तुम मेरी हो फिर 
दूर क्यों हो ये तुम 
समझाओ मुझे ?

Friday 6 March 2020

प्यार का बंधन !


प्यार का बंधन !

मुझे नहीं चाहिए वकृत 
मानसिकता वाली आज़ादी 
मुझे आदत उस सुख की है
मुझे उस सुरक्षा की जरुरत है 
जो तेरे अपनेपन और तेरे 
प्यार के बंधन में मिलती है 
जो मुझे और किसी की नज़र 
में ऊँचा स्थान भले ही ना 
दिलाये पर तेरे दिल में वो  
स्थायित्व सदा दिलाता है  
मुझे बिलकुल जरुरत नहीं है 
उस आभाषी आज़ादी की जो 
मुझे स्वच्छंदता में डुबो दे  
तुम्हारे प्यार के अटूट और  
अकाट्य बंधन में मैं आकंठ 
डूबी रहना चाहती हूँ !

Thursday 5 March 2020

मन की बात !


मन की बात !

मैं कवि नहीं हूँ 
ना है मुझे किसी 
खास विधा का ज्ञान 
मैं लिखता वही हूँ 
जो तुम मेरे इस 
मन में उपजाती हो
हां ये भी पता है मुझे
जो बदलती है मेरे इस 
मन के भावों को वो बस 
एक तेरी विधा है और 
वो भी तुम ही हो जो मेरे 
भावों को हु-ब-हु आखरों 
में उतरवाती हो ये मेरे 
मन की बात है इसे 
कोई गीत या कविता 
ना समझा करो तुम !    

Wednesday 4 March 2020

गहरा जख्म !


गहरा जख्म !

कुछ जख्म ऐसे होते है 
जो दिखते तो नहीं है 
पर दर्द बेइंतेहा देते है
उस जख्म में से रक्त 
तो बिलकुल रिसता नहीं है 
पर जख्म गहरा होता है 
हाल बिलकुल वैसा ही होता है 
उस का जैसे कोई मुस्कुराता 
हुआ खूबसूरत चेहरा अपने 
भीतर आंसुओं का सैलाब 
हंसी के लिबास में छुपाकर 
अपने दिल ही दिल में 
जार जार रोता है !  

Tuesday 3 March 2020

पर तुम कहाँ हो !


पर तुम कहाँ हो !

भींगी-भींगी रुत है 
भींगे-भींगे शब्द है 
भींगी-भींगी रात है 
पर तुम कहाँ हो ?
भींगे-भींगे भाव है 
भींगे-भींगे होंठ है 
भींगा-भींगा स्पर्श है  
पर तुम कहाँ हो ?
भींगी-भींगी आहट है 
भींगी-भींगी गुनगुनाहट है  
भींगे-भींगे ज़ज़्बात है 
पर तुम कहाँ हो ?
भींगी-भींगी सी तुम है 
भींगा-भींगा सा मैं है 
भींगा-भींगा सा आलम है 
पर तुम कहाँ हो ?

Monday 2 March 2020

उर्वरक रज्ज !


उर्वरक रज्ज !

हर एक बीज को 
जरुरत होती है 
खुद को उर्वरक 
रज्ज में मिलाने की   
गर उसे अपना 
अस्तित्व पाना है 
तो उसे मिलना पड़ता है
उस रज्ज में तभी तो 
वो पायेगा अपना अस्तित्व
तब ही तो वो बन पायेगा 
एक विशाल वृक्ष 
एक बीज ही तो है 
जिसे जरुरत होती है 
उर्वरक रज्ज की 
जिस में वो गला सके 
मिला सके खुद को  
तब ही तो वो पा सकेगा 
अपना अस्तित्व !

Sunday 1 March 2020

ना-उम्मीदों के पल !


ना-उम्मीदों के पल !

ना-उम्मीदों के उन पलों  
में भी यूँ लगता है मानो 
मेरे दिल की धड़कन बन 
मुझमें समाये हो तुम 
उम्मीदों के उन पलों में  
भी यूँ लगता है मानो मेरी 
सांसों की सरगम बन मुझमें
ही कहीं गुनगुना रहे हो तुम 
गर अँधेरा ही लिखा है मेरे 
नसीब में तो यक़ीनन मेरी 
उम्मीदों के चिराग नज़र 
आते हो मुझे तुम  
इसलिए आज के बाद कभी 
मत पूछना तुम मुझे कि क्यों 
करती हूँ मैं इतना प्यार तुम से !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !