जीने की आरज़ू !
तुम्हारी चुप्पी जैसे
मेरे दिल की धड़कन
रुक गयी हो !
तुम्हारी बेरुखी जैसे
सूरज को ग्रहण लग
गया हो !
तुम्हारी नाराज़गी जैसे
मेरे मुँह का स्वाद कसैला
हो गया हो !
तुम्हारी याद आयी तो
जैसे एक एहसास हुआ
की अब सब कुछ ठीक
हो गया हो !
तुम्हारी प्यास जैसे
मेरे जीने की आरज़ू
सलामत हो !
No comments:
Post a Comment