Saturday, 21 March 2020

जीने की आरज़ू !


जीने की आरज़ू !

तुम्हारी चुप्पी जैसे 
मेरे दिल की धड़कन 
रुक गयी हो !
तुम्हारी बेरुखी जैसे 
सूरज को ग्रहण लग 
गया हो !
तुम्हारी नाराज़गी जैसे 
मेरे मुँह का स्वाद कसैला 
हो गया हो !
तुम्हारी याद आयी तो 
जैसे एक एहसास हुआ 
की अब सब कुछ ठीक 
हो गया हो !
तुम्हारी प्यास जैसे 
मेरे जीने की आरज़ू 
सलामत हो !    
     

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !