Monday, 16 March 2020

सिहरना प्रेम में !


सिहरना प्रेम में !

तुम्हारी आँखों का स्पर्श 
लिपटता है मेरी देह से 
तब मैं काँप जाती हूँ 
फिर सोचती हूँ मैं 
कितना सहज होता है 
सिहरना प्रेम में जैसे 
गर्मी की अलसायी 
दोपहरी में थककर
लेटी नदी पर दरख्तों 
ने साज़िश रच कर 
एक किरण और मुट्ठी
भर हवा बिखेर दी हो 
फिर देखो जादू नदी का  
और सुनो कल-कल बहने 
की उसकी सुमधुर आवाज़ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !