Sunday, 15 March 2020

छुवन का नशा !


छुवन का नशा ! 

बादलों की ओट से 
झिलमिलाते सितारों  
के निचे रात के दूसरे 
पहर में मेरे हाथों को 
थामे हुए तुम्हारे हाथ 
तुम्हारी छुवन के नशे 
में रोम रोम खिलता 
मेरे जिस्म का पोर पोर 
उस पर मिटटी का लेप 
और बोसों का काफिला
गिरफ्त में मेरी सांसें 
और सुकून आहों का 
बहुत जालिम हो तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !