प्यार का पंचांग !
सुनो
तुम से दूर रहकर भी
तुम्हारे समर्पण को महसूस
करना सुखद एहसास देता है ;
जैसे
आषाढ़ की बदली में
छुपकर भी सूरज गर्माहट
और रौशनी जरूर देता है ;
पर
मेरी हो कर भी
तुम्हारा मुझ से दूर रहना
मुझे यूँ लगता है !
मानो
जेठ की दोपहरी में
सर पर तैनात सूरज की
जला देने वाली तपन ;
क्या
प्यार के पंचांग में
जेठ आसाढ़ के बाद है !
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