Thursday, 19 March 2020

तरंगित मौन !


तरंगित मौन !

जब जब दूर बैठा मैं 
अपनी बंद आँखों से 
भी निहारता हूँ तुम्हे 
तभी हमारे बीच का 
मौन शांत प्रकृति की 
ध्वनियों की तरह ही 
तरंगित हो उठता है 
विचलित नहीं करता  
वो बल्कि उस मौन को
वो मुखर कर देता है 
और शब्दों से भरा वो 
आकाश मुझे घेर लेता है 
जो तुम्हारे होने की ही 
तो अनुभूति देता है 
क्योंकि उस आकाश में 
भरा जल तुम्हारे ही 
अनुराग का प्रतीक तो है !  


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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !