Sunday, 22 March 2020

तुम्हारा दूर जाना !


तुम्हारा दूर जाना !

तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
धधकती हुई आग में एकाएक 
ऊपर से पानी पड़ जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
हँसते हँसते अचानक से अश्कों 
का बेबात छलक आना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
चमकते धधकते सूरज के आगे 
अचानक से काली काली बदलियों  
का छा जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
गले से निकलते सुरीले से गीत 
का दूसरे ही पल में जैसे बेसुरा 
सा हो जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
सुबह सुबह का सबसे हसीं सपना 
अधूरा रह जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे 
किसी कश्ती का किनारे पर आकर 
अचानक से डूब जाना !
तुम्हारा मुझ से दूर जाना जैसे
नूर से भरी मेरी आँखों से बरबस 
ही अश्कों का बरस जाना !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !