माना कि भाव निरक्षर होते है ,
पर अक्षरों को वो ही साक्षर करते है ,
भावों के अंतरदृग जो देख पाते है ;
वो ये आखर कभी नहीं देख पाते है ,
भाव देख पाते है सुन भी पाते है ,
पर विडम्बना तो देखो बोल नहीं पाते है ;
अक्षर लिखते भी है दिखते भी है ,
पर भावों की तरह महसूस कहा पाते है ,
मन की अक्षर जब साक्षर हो जाते है ,
तो वो मान प्रतिष्ठा और पद पाते है ;
पर भाव शुद्ध होकर भी ये सब कहा पा पाते है ,
हाँ वो विशुद्ध हो कर ईश को जरूर पा लेते है !
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