Saturday 30 June 2018

शब्द रेखा बन जाए




शब्द रेखा बन जाए 

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तुम्हारी सांसो ने 
मेरे कहे एक-एक 
शब्दों में वो ऊष्मा 
भर दी जिससे वो  
शब्द जाने कब  
अमर हो गए पाकर 
तुम्हारी सांसों की ऊष्मा
वो तो वही शब्द थे जो 
मुझे सबसे प्रिय थे 
अब मैं उन शब्दों को 
घिस रहा हु अपनी 
दोनों हथेलीओं पर 
और तब तक घिसता 
रहूँगा उन्हें जब तक 
की वो मेरी दाहिनी हथेली पर
तुम्हारी नाम की चमकती रेखा 
बनकर ना उभर उठे !

Friday 29 June 2018

विधाता की लेखनी





विधाता की लेखनी ---------------------

तुम्हारी यादों को 
सुनहरे रंग में रंगने 
के लिए मैंने वो ख्वाब 
भी देखे जिनका टूटना 
पहले से ही सुनिश्चित था;
यह जानते हुए की ये
ख्वाब ही बनेंगे एक दिन 
सबसे बड़े दर्द की वजह
फिर भी देखे वो ख्वाब 
और तो और देखते हुए 
वो ख्वाब खिलखिलाकर
हसा भी था उस तुम्हारी 
तस्वीर के साथ ये जानते  
हुए भी की सच के धरातल पर
तुम कभी नहीं होगी मेरे साथ 
फिर भी साथ पाना चाहता था 
मैं तुम्हारा चाहे विधाता को 
मनाना पड़े उसी की लिखी 
लेखनी उसी से मिटाने के लिए  
तुम्हारी यादों को 
सुनहरे रंग में रंगने 
के लिए मैंने वो ख्वाब 
भी देखे जिनका टूटना 
पहले से ही सुनिश्चित था !  

Thursday 28 June 2018

विश्वास के धोगो से बुनी डोर

विश्वास के धोगो से बुनी डोर 

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एहसासों की पगडंडियों पर
रिश्तों का कारवां उम्मीदों के
सहारे आगे बढ़ता जाता है ;
जिस दिन एहसास शून्य
होने लगते है उस दिन उम्मीदें
स्वतः ही दम तोड़ने लगती है ;
और ज़िन्दगी की वो ही पगडंडियां
जो कारवों से भरी रहती थी कभी
उमीदों के रहते अचानक सुनसान 
नज़र आने लगती है और ये उम्मीदें
जो दबे पांव आकर हावी हुई रहती है
रिश्तो की डोर पर वो डगमगाने लगती है
लेकिन जो रिश्तों की डोर बुनी होती है
मतलब के धागों से वो टूट जाती है
डोर होती है बुनी विश्वास के धागो से
वो बोझ उठा लेती है उन सभी रिश्तों
की उमीदों का !

Wednesday 27 June 2018

वो पागल सा लड़का


वो पागल सा लड़का 

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बुझ चुके सपनो की राख 
छान रहा हु इस उम्मीद में की  
शायद कंही अब भी मिल जाए  
कोई चिंगारी जिसे देकर हवा 
फिर से जलाई जाए सपनो की आग 
बिना सोचे और समझे की राख गर
ठंडी ना हुई है और मिल गयी कोई 
चिंगारी तो आग बाद में जलेगी 
उसके पहले वो चिंगारी जलायेगी  
मेरे ही ये दोनों हाथ जिन्होंने उससे 
किया था वादा जीवन भर थामे रखेंगे
ये मेरे दोनों हाथ उसके दोनों हांथों को 
अब अगर वो आ गयी तो क्या 
जवाब दूंगा मैं उसे की अब नहीं 
थाम सकता मैं तुम्हारे हाथ क्योंकि 
जला लिया है मैंने इनको अपने ही 
सपनो की राख में दबी चिंगारिओं से !

Tuesday 26 June 2018

तुम्हारी चाहत का समंदर

तुम्हारी चाहत का समंदर
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उसने कहा ये जो 
भूरी-भूरी लहरें है 
तुम्हारी आँखों की 
वो खिंच ले जाती है 
मुझे तुम्हारी रूह के 
रसातल में ;मैंने कहा
मेरे पास कुछ और नहीं 
इस भूरी -भूरी लहरों के सिवा
यंहा तक की कोई अनुभव 
भी नहीं प्रेम का ना ही है 
कोई नाव जिसमे बैठा कर 
तुम्हे पार करा दू इन लहरों से
अगर मैं तुम्हे प्रिय हु 
तो लो थाम मेरा हाथ
मैं तुम्हे इस चाहत के 
समंदर के अंदर पानी के निचे 
साँस लेना सीखा दूंगा  
क्यूँ की सर से पांव तक 
मैं सिर्फ तुम्हारी चाहत 
का समंदर हु !

Monday 25 June 2018

राह पर खड़ा हु खाली हाथ

राह पर खड़ा हु खाली हाथ
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देखते हुए इस रात को
पूरी रात खोजता रहा वो
जाने किसे बड़ी शिद्दत से 
गुजरते हुए निराशाओं
के गलियारों से तब तक
जब तक की रात अपने
दिन से मिलकर तू गले
अभिभूत नहीं हो जाती
और जब छाने लगता है
उजाला और हवाएं धीमी
धीमी हो बंद नहीं हो जाती
तब वो होकर उदास फिर से
खड़ा हो जाता है अपनी राह
पर लटकाये दोनों खाली हाथ !

Sunday 24 June 2018

ईश्वरीय शक्ति को स्वीकारो


ईश्वरीय शक्ति को स्वीकारो
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इतिहास गवाह है आज हुए आज के पहले 
हुए और जो आने वाले कल में होंगे चाहे वो हो
कोई भी जीव या हो भूत प्रेत पिचास
असुर या राक्षस उन सभी ने ना सिर्फ
ईश्वरीय शक्ति के अस्तित्व को स्वीकारा है
बल्कि उनकी आराधना कर उनको रिझाया भी है
फिर ना जाने क्यूँ कुछ लोग जिन्होंने कुछ अपनों
को खोया है आज वो उस ईश्वरीय सत्ता को ही
नकार अपने आने वाले भविष्य को दाव पर लगा
उसी परम शक्ति को दुत्कारने में लगे है मेरी सलाह है
उन तमाम पढ़े लिखे लोगो व वैज्ञानिको को की एक बार
फिर से वो पढ़े इस धरती के इतिहास को जंहा परीक्षित ने
अपनी माँ के गर्भ में ही झेला था मृत्युतुल्य कष्ट और
सोचे क्या कोई बीज गर्भ में कोई पाप कर सकता है
अगर नहीं तो फिर क्यों उसे वो कष्ट झेलना पढ़ा
तब शायद उनको समझ आये की पूर्वजन्म के कृत्यों
को हम तो भूल सकते है परन्तु विधाता की लेखनी उसे
सदा अंकित रखती है अपने बही-खाते में ये तो उत्तरा थी
जिन्होंने भगवन विष्णु को सहृदय पुकारा अश्वत्थामा के
ब्रह्मास्त्र से अपने गर्भ की रक्षा हेतु तब भगवान विष्णु ने
स बीज की रक्षा की जिसे आगे चलकर हमने
राजा परीक्षित के रूप में जाना तो ये समझ ले की
उम्र स्वास्थ ख़ुशी व दुःख ओर भोग इंसान अपने
कर्मो से अपनी किस्मत में विधाता से लिखवाता है
और वो हर एक जीव को यंहा भोग कर जाना होता है
ईश्वर सिर्फ आपके सच्चे भावो के भूखे है आज भी वो
तुम्हे वो सब कुछ लौटा सकते है जिसका तुम्हे मलाल है
बस जरुरत है उन सच्चे भावो की जिन भावो से पत्थर बनी
अहिल्या को भी भगवान राम अपने चरणों से छूकर मुक्ति देने आते है ! 

कृष्ण पक्ष की रात



कृष्ण पक्ष की रात 

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जिस तरह
चिलचिलाती दुपहरी
को बारिश की कुछ 
नन्ही-नहीं बुँदे भी 
कर देती है रोशन 
ठीक वैसे ही तुम  
कभी यु अचानक से 
आकर पास मेरे इस 
कृष्ण पक्ष की अंधियारी 
रात में लौटा दो 
वो ऊष्मा जो 
तुम्हारी नादानीओं 
की वजह से खो चूका है 
ये हमारा रिश्ता !

Saturday 23 June 2018

मेरे मन का सूना आंगन गूंजता है !

मेरे मन का सूना आंगन गूंजता है !
..............................................
ना जाने किन्यु मेरा मन तरसता है 
सुनने को तुम्हारी आवाज़ ;
तब जंहा कंही भी होता हु मैं बस
बंद कर अपनी पलकों को करता हु
कोशिश सुनने की तुम्हारी आवाज़ में
तुम्हारा पुकारा जाना मेरा नाम "राम"
जैसे जग का सबसे मधुरिम राग
घुल जाता है मेरी रग- रग में
बहने लगती है खुसबू हवाओं में
जैसे कोई कुंवारी कच्ची धुप उतरकर
मेरे मन के शर्द और सुने आंगन में
करती है सम्मोहित मेरे पुरे अस्तित्व को
फिर एक गुनगुनाहट तुम्हारे इश्क़ की
गूंजने लगती है मेरे कानो में बस
उसी वक़्त रुक जाती है धड़कन मेरी
लुप्त हो जाती है चेतना मेरी और
थम जाता है सृष्टि का चक्र और
हो जाती है असयंमित मेरी सांसें 
उस पल तुम सवार हो मुझ पर
कर लेती हो स्थापित अपना स्तम्भ !
फिर ना जाने किन्यु मेरा मन तरसता है 
सुनने को तुम्हारी आवाज़ ;

Friday 22 June 2018

एक नया भरोषा

एक नया भरोषा
......................
सुनो  ...
ये जो अधखुले  ‘
अधर है तुम्हारे वो
यु नमक के समंदर में से 
चुनते है विरह के मोती और
अकस्मात ही वर्षा के आगमन
के भाँती घेर लेते है मुझे और
मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को
फिर मैं एक बार और विवश
होता हु देने तुम्हे एक और मौका
दिलाने मुझे एक नया भरोषा
क्योकि उस पल मुझे यु लगता है
जैसे इस जगत में आया हु मैं   
एक सिर्फ तुम्हारे लिए !

Thursday 21 June 2018

महसूसियत का दर्द

सुनो  ...
यु ही रोज
तेरे इंतज़ार में
जो दिन उगता है
वो कटता ही नहीं
जो रात आती है
वो गुजरती ही नहीं
परन्तु जो निरंतर
कटता और गुजरता
जा रहा है वो सिर्फ मैं हु
ये सब हो रहा है
तुम्हारे होते हुए और 
तुम्हारे ही इंतज़ार में
इस महसूसियत के दर्द
जब हद से बढ़ जाता है
तब रोता हु तो भी दर्द
कम नहीं होता जाने किन्यु
जो हँसता हु अकेले तो ये
दर्द बढ़ जाता है और जो
परन्तु जो निरंतर
कटता और गुजरता
जा रहा है वो सिर्फ मैं हु
जो बढ़ता जा रहा है
वो है तेरा इंतज़ार और
वो है मेरा प्यार  

Wednesday 20 June 2018

वो तुमसे दूर क्यूँ है !




वो तुमसे दूर क्यूँ है
_______________
रात अँधेरी और काली काली 
मेरी आँखों में डाल कर अपनी ऑंखें
पूछती है मुझसे वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनसान राह वीरानी भी थाम कर 
हाथ मेरा पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
तेज़ हवाएं ले-ले हिलोरें
खट खटाकर मेरी खिड़कियां 
मेरे दरवाज़े पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
एक ओर से आकाश का विशाल आकार
दूसरी ओर से धरती की गहराई     
लगा कर जोर-जोर से आवाज़ पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही 
अश्क़ों की बूंदें इकट्ठी होकर सभी 
भिगोती हुई मुझे पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ 
सरसराहट कर पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनो मैं समझता हु तुम्हारी 
एक-एक मज़बूरियाँ लेकिन 
मेरे लिए ना सही कम से कम 
इनका मुँह बंद करने की खातिर   
ही आ जाओ ना तुम मेरे पास !

Monday 18 June 2018

मेरे आंगन की एक लौ

मेरे आंगन की एक लौ
...............................
सुनो  ...
ये जो चाँद है ना
जब आसमान में
नहीं दिखता है
तब भी चमकता है
जैसे मेरी नींद मेरे
पास नहीं होती तो भी
वो होती है तुम्हारी
आँखों में क्योकि वो
जिस डगर पर चलकर
आती है उसके मुहाने पर
बैठी रहती है तुम्हारी वो
दो शैतान कारी-कारी अँखियाँ
जो मेरी नींद को धमका कर रोक लेती है
अपनी ही अँखिओं में और फिर
पूरी रात मैं जगता हुआ तुम्हारे अधरों
की सुवास की कोरी छुवन को अपनी
अँखिओं की किनारी से उतर कर
मेरे आंगन में एक लौ की तरह टिमटिमाते
हुए देखता हु मेरी ज़िन्दगी के स्वरुप में
जंहा तुम अंकित होती हो मेरे जीवन
पृष्ठ पर ज़िन्दगी के रूप में !

Sunday 17 June 2018

पिता



पिता 
------
तेरी आहट जो पहचाने
वो है तेरे पिता ;
मेरी आहट जो पहचाने
वो है मेरे पिता ;
तेरे दिल में है क्या-क्या
वो जाने तेरे पिता ;
मेरे दिल में है क्या-क्या
वो जाने मेरे पिता ;
तेरे चेहरे के भाव जो पढ़ ले
वो है तेरे पिता ;
मेरे चेहरे के भाव जो पढ़ ले
वो है मेरे पिता ;
तेरे हर दर्द को जो हर ले
वो है तेरे पिता ;
मेरे हर दर्द को जो हर ले
वो है मेरे पिता ;
तुझे देखकर जो है जिन्दा
वो है तेरे पिता ;
मुझे देखकर जो है जिन्दा
वो है मेरे पिता ;
तुझमे देखे जो अपना जंहा
वो है तेरे पिता ;
मुझमे देखे जो अपना जंहा
वो है मेरे पिता ;

Saturday 16 June 2018

सब समेटने के बाद





सब समेटने के बाद

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चुन-चुन कर
समेट लिया है
तुम्हारी यादों का कारवाँ
और रख लिया उसे
एक पोटली में ...
दिल ने कहा बस
भी करो अब हो गया ना
समेत तो लिया सब कुछ
पर उसकी ना सुनकर
लगाया जोर दिमाग पर
कि कहीं कोई याद
बाकी तो ना रह गयी ...
दिमाग ने भी चुपचाप
लगा दी मुहर और
मार दिया ताना
मुझ पर हँसते हुए
कि सारी यादों को
समेटने के बाद भी
कुछ और क्या है जो
चाहता है समेटना
उसे कैसे कहु की
मैं चाहता हु उस वक़्त
को भी साथ ले जाना
जिसने दी थी हमे
इतनी सुन्दर यादें !


Friday 15 June 2018

जज़्बाती दरिया





जज़्बाती दरिया
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एक दरिया मेरे  
महकते जज़्बातों का,
वो उमड़ता है तब  
जब ज़िक्र तेरा मेरे  
कानों से गुज़रता हुआ 
सीधे जा पंहुचता है 
दिल की रसातल में ...
इस जज़्बाती दरिया ने 
कभी तुझे निराश किया हो 
ये भी मुमकिन है ,
क्योंकि तेरे लिए ही
दरिया का बहना अब  
बन गयी है इसकी नियति
पर इतना याद रखना
कंही सुख ना जाये  
ये जज़्बाती दरिया 
तेरी प्यास बुझाते बुझाते,
रह जाए बस इसमें कुछ 
तुम्हारे फेंके पत्थर 
और तुम्हारे तन से 
निकली मटमैली धूल 
और कुछ ना बचे इसमें 
तुम्हारे कुछ अंश के सिवा !

Thursday 14 June 2018

सत्यम शिवम् सुंदरम !


सत्यम शिवम् सुंदरम !
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जंहा हो जाते है 
सही और गलत 
के अलग-अलग मायने
वंहा कैसे कोई 
समझ सकता है 
परिभाषा अद्वैत की 
जंहा हो जाता है 
सच का स्वरुप 
अलग-अलग वंहा
समय अपनी बात 
कुछ इस तरह से 
कह जाता है की 
रिश्तों के मायने 
ही बदल जाते है 
और मायने जब बदल 
जाते है तो कैसे कोई 
रिश्ता निभ सकता है 
सच सुन्दर है 
सच ही शिव है 
तभी तो कहते है 
सत्यम शिवम् सुंदरम ! 

Wednesday 13 June 2018

देह की महत्ता



देह की महत्ता
___________

तुम्हारी कहु या कहु मेरी
याददाश्त सबकी ही होती है
कमजोर लेकिन गर बात हो
तन की तो उसकी याददाश्त
तीक्ष्ण ही रहती है सदैव
तुम्हारा कहु या कहु मेरा
मन तो चंचल ही होता है
वो भागता फिरता है
अपनी चाहत की पीछे
लेकिन स्वभाव देह का
होता है स्थिर वो कंही
और कभी जाता नहीं
मन भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव
मन करता है कल्पनाएं और
देह करता है सारी हदें पार
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकनी चाहिए   ! 

Tuesday 12 June 2018

जून की बारिश


जून की बारिश

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आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
होंठ दोनों के एक साथ थरथराने ना लगे
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
तन दोनों बन ना जाये लिहाफ एक दूजे का
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
तपती धरा को बादल बरस कर हरहरा ना दे
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
पसीने की ये बूंदें जमकर बन ना जाए
ओस की ठंडी-ठंडी छोटी छोटी बूंदें
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
तृप्त ना हो जाए तुम्हारी यौवन युक्त तपिश
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक
हर्फ़ होंठो से निकलना छोड़
नज़रों से ना करने लगे इज़हार
आओ इस तपते जून की बारिश में
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक

Monday 11 June 2018

देह की देहलीज़



देह की देहलीज़
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ऐसा तो नहीं कह सकता मैं
की किसी ने भी ना चाहा था
मुझे तुमसे मिलने के पहले
हां इतना जरूर पुरे यकीन से
कह सकता हु की किसी को
इस देह की दहलीज़ को ना
लांघने दिया है मैंने तुमसे
प्यार का इकरार करने के बाद
और जब तुम मिली तो ना जाने
किन्यु खुद को रोक ही नहीं पायी
खुद से खुद को ही और तुम कब
उस दहलीज़ को लाँघ अंदर आ गए
पता ही नहीं चला मुझे !    

Sunday 10 June 2018

एहसास बन गए ज़ज़्बात




एहसास बन गए ज़ज़्बात
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इश्क़ की सारी हदों को 
पार कर जब मैंने उसे उसके 
घर की देहलीज़ को पार करने कहा 
तब उसने मुझे सिखाया कि कैसे 
इश्क़ भी हदों में रहकर किया जा सकता है ;
और मैं निरुत्तर सा खड़ा हु सोचकर की 
अब क्या जवाब दू अपने उन एहसासो को 
जिन्होंने कई बार रोका था मुझे 
ये कह कर की एहसास ही रहने दो 
मत बनाओ हमे अपने ज़ज़्बात नहीं तो 
एक दिन वो न एहसास रह पाएंगे  
ना ही कहलायेंगे ज़ज़्बात तब तुम खुद 
शर्मिंदा हो जाओगे उन दोनों की नज़र में 
जिनसे तुमने कहा था की एक दिन 
तुम दोनों करोगे मुझे सलाम सर उठा कर 
और कहोगे की "राम" तुम्हारे इश्क़ ने 
हमे एहसास से ज़ज़्बात बनाकर हमारा अधूरापन दूर कर दिया !

Saturday 9 June 2018

पूर्ण प्रेम का पूरा चाँद


पूर्ण प्रेम का पूरा चाँद _______________

शीतल चाँद और उसके 
पिले-पिले चमकते सितारे 
रात को कितना सजा देते है; 
चाँद भी यु न्योछावर करता है 
अपनी चांदनी को रात पर 
जैसे सहेलियां करती है ;
सोलह श्रृंगार अपनी सहेली का 
बनाने उसे दुनिया की सबसे 
ख़ूबसूरत दुल्हनिया जिसे 
जब देखे उसका दूल्हा तो 
बस उसे ही देखता रह जाए;   
और रात जब देखती है खुद को 
अपने दूल्हे की आँखों में 
तब उसे  एहसास होता है 
चाँद के प्यार में वो 
कितनी निखर गयी है ; 
और वो सांवली सलोनी सी 
रात बोती है अपने प्रेम के 
सृजन का बीज अपनी कोख में 
तब चाँद रात के प्रेम में होता है 
पूर्ण और कहलाता है अपनी 
पूर्णिमा का पूरा चाँद !

Thursday 7 June 2018

तुम आस्तिक हो या नास्तिक


तुम आस्तिक हो या नास्तिक ---------------------------------

जब-जब तुमने पूछा मुझसे 
राम मैं तुम्हे कैसी लगती हु ;
तब-तब मैंने तुझमे भी एक रब को देखा है ;
जो प्रेम में होते है ;
उन्हें इस धरती के कण कण में 
भगवान बसे दिखाई देते है,
और जो प्रेम में नहीं होते;
उनको इंसानो में भी कोई 
सुन्दर और कोई बदसूरत दिखाई देता है ;
पर मैंने कभी पूछ कर नहीं देखा तुम्हे 
बोलो मैं तुम्हे कैसा लगता हू ;
चलो आज तुम बतलाओ मुझे
मैं तुम्हे कैसा लगता हु ;   
गर तुम्हारा जवाब ये हो की 
मुझे भी तुझमे एक रब दिखता है;
तो ये बताओ तुम कैसे खुद को  
उस रब से दूर रखती हो 
क्या तुम्हे उस रब में विश्वास नहीं बोलो? ! 

Wednesday 6 June 2018

तुम्हारा प्रेम पाना चाहता हु



तुम्हारा प्रेम  पाना चाहता हु
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मैंने कभी नहीं चाहा
पाना प्रेम सभी का ;
मैंने तो चाहा भी
और माँगा भी सिर्फ
"तुम" मुझे प्रेम करो
और करे उतना ही प्रेम
मुझे तुम्हारी संतति भी
मैं चाहता हु प्रेम देना भी
सिर्फ एक तुम्हे और
तुम्हारी संतति को भी
है इनको प्रेम करने और
इनका प्रेम पाने के
लिए लड़ रहा हु आज
मैं इस ज़माने से और लड़ता
रहूँगा कल भी क्योकि मैंने
कभी नहीं चाहा पाना प्रेम सभी का !
  

Tuesday 5 June 2018

धरती ओढ़ेगी धानी चूनर

धरती ओढ़ेगी धानी चूनर

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एक ओस की बून्द ही तो हु; 
पता है मुझे वो सुबह की 
पहली तीक्ष्ण किरण आते ही  
सूखा देगी मुझे कुछ इस तरह 
की चाह कर भी मैं नहीं साबित 
कर पाउँगा की मैं आया था यंहा 
सिर्फ उसके लिए उसमे मिल जाने को 
नियति अपनी जानते हुए भी 
मैं नहीं करना चाहता प्रयत्न 
उस से बचने का वरना प्रकृति 
का नियम कंहा रह पायेगा कायम
इस धरती पर और धरा कैसे ओढ़ 
पाएगी अपना धानी चूणर  !

Monday 4 June 2018

क्या-क्या सोचा करती थी


क्या-क्या सोचा करती थी
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वो मासूम सी रज्ज 
चहती-फुदकती सी
एक भी दुआ जो
जाया नहीं करती थी
खुद पर उसका बस
चले तो अपने हिस्से
का आशीर्वाद भी
'उसके' नाम लिख दे
यहाँ तलक सोच रखा था
कि जो सितारा बनी
उसके पहले तो भी
उसी की खिड़की पर
आकर टूटेगी और
टूटी सितारा को देखकर
वो मांगेगा एक मुराद,
जिसमे वो होगी शामिल
और वो हो जाएगी पूरी
इस जन्म ना सही अगले
जन्म तो पा लेगी वो उसे
वो मासूम सी रज्ज
अपने राम के लिए
क्या कुछ नहीं सोचा करती थी !

Sunday 3 June 2018

प्रेम की शुरुआत



पहली मुलाकात
तेरे मेरे प्रेम की शुरुआत
आँखों में बुनते ख़्वाब
तेरे हाथों में मेरा हाथ
हौले से तेरा मुस्कुराना
शर्म से आँखों को झुकना
फिर लम्बी होती सांसे
और जुबाँ होती खामोश
ना तेरे लबों पे लफ़्ज
ना मेरे लबों पर लफ़्ज
बस दिलों का आलिंगन
और मोहब्बत में डूबे दो दिल.. 

Saturday 2 June 2018

फूलों का सौंदर्य



फूलों का सौंदर्य 
-----------------
तुम जब नहीं होते पास मेरे
तो सूरज की चमक भी 
फीकी -फीकी सी लगती है ;
और वो ठहरता भी नहीं 
ज्यादा देर यंहा जाने किन्यु ;
पेड़ों के भीतर की थिरकन भी 
जैसे शिथिल पड़ जाती है ;
फलस्वरूप उन पेड़ों के फूल का 
सौंदर्य भी परवान नहीं चढ़ पाता;  
अंततः जब मैं सिर्फ उनकी खुशबू
को पाना चाहती हु तब भी रह जाती हु; 
बिलकुल खाली हाथ तुम तो नहीं रहते
पास मेरे लेकिन क्या तुम्हे पता है ;
तुम कितना कुछ मेरा अपने साथ 
ले जाते हो की मेरी पूरी की पूरी 
दुनिया ही सुनी-सुनी खाली-खाली 
बेरंग सी हो जाती है क्या तुम्हे पता है; 
तुम जब नहीं होते पास मेरे तो  ....

प्रेम के पल



प्रेम के पल 
-------------
क्या बता सकती हो तुम  
मुझे कोई ऐसा पल  
हमारे प्रेम का जिसका 
हमने नहीं किया हो महसूस  ;
और कैसे नहीं करते ये बताओ 
जबकि उस प्रेम के पल में 
कुछ भी तो नहीं होता इस 
शरीर के बाहर सारा कुछ 
तो सिमट आता है ;
अपने इस तन के अंदर 
और समाप्त होते ही उस 
पल के कुछ भी नहीं रहता 
इस शरीर के अंदर
जैसे सारी महसूसियत
निकल कर उड़ जाती है; 
खुले आसमान में अपनी  
पहुंच से बहुत दूर !  
क्या बता सकती हो तुम 
कोई एक ऐसा पल प्रेम का 
जो हमने नहीं किया हो महसूस ?

Friday 1 June 2018

अपने अनुराग को शब्दों में उकेरता हु !



अपने अनुराग को शब्दों में उकेरता हु !
------------------------------------
तुम्हारी अंगुलिओं के साथ
अपनी अंगुलिओं को जोड़ कर 
कुछ अव्यक्त भावो को व्यक्त करता हु; 

ठीक वैसे ही जैसे नदी बहती हुई भी 
अपने प्रवाह के भीतर समंदर में 

जा मिलने की वो प्यास भरती है ;
तुम्हारी अंगुलिओं के साथ
अपनी अंगुलिओं को जोड़ कर 
अपने अनुराग को शब्द देता हु;
जिन शब्दों को तुम अपनी आँखों की बजाय 

अपनी महसूसियत से पढ़ ;
मुस्कुराती हो और मैं उस मुस्कराहट 
के प्रतिउत्तर में अपना सबकुछ हा 
सच में अपना सबकुछ तुम्हे सौंप देता हु ! ---------

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !