Monday 25 June 2018

राह पर खड़ा हु खाली हाथ

राह पर खड़ा हु खाली हाथ
-----------------------------
देखते हुए इस रात को
पूरी रात खोजता रहा वो
जाने किसे बड़ी शिद्दत से 
गुजरते हुए निराशाओं
के गलियारों से तब तक
जब तक की रात अपने
दिन से मिलकर तू गले
अभिभूत नहीं हो जाती
और जब छाने लगता है
उजाला और हवाएं धीमी
धीमी हो बंद नहीं हो जाती
तब वो होकर उदास फिर से
खड़ा हो जाता है अपनी राह
पर लटकाये दोनों खाली हाथ !

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !