Friday, 29 June 2018

विधाता की लेखनी





विधाता की लेखनी ---------------------

तुम्हारी यादों को 
सुनहरे रंग में रंगने 
के लिए मैंने वो ख्वाब 
भी देखे जिनका टूटना 
पहले से ही सुनिश्चित था;
यह जानते हुए की ये
ख्वाब ही बनेंगे एक दिन 
सबसे बड़े दर्द की वजह
फिर भी देखे वो ख्वाब 
और तो और देखते हुए 
वो ख्वाब खिलखिलाकर
हसा भी था उस तुम्हारी 
तस्वीर के साथ ये जानते  
हुए भी की सच के धरातल पर
तुम कभी नहीं होगी मेरे साथ 
फिर भी साथ पाना चाहता था 
मैं तुम्हारा चाहे विधाता को 
मनाना पड़े उसी की लिखी 
लेखनी उसी से मिटाने के लिए  
तुम्हारी यादों को 
सुनहरे रंग में रंगने 
के लिए मैंने वो ख्वाब 
भी देखे जिनका टूटना 
पहले से ही सुनिश्चित था !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !