सत्यम शिवम् सुंदरम !
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जंहा हो जाते है
सही और गलत के अलग-अलग मायने
वंहा कैसे कोई
समझ सकता है
परिभाषा अद्वैत की
जंहा हो जाता है
सच का स्वरुप
अलग-अलग वंहा
समय अपनी बात
कुछ इस तरह से
कह जाता है की
रिश्तों के मायने
ही बदल जाते है
और मायने जब बदल
जाते है तो कैसे कोई
रिश्ता निभ सकता है
सच सुन्दर है
सच ही शिव है
तभी तो कहते है
सत्यम शिवम् सुंदरम !
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