अपने अनुराग को शब्दों में उकेरता हु !
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तुम्हारी अंगुलिओं के साथ
अपनी अंगुलिओं को जोड़ कर
कुछ अव्यक्त भावो को व्यक्त करता हु;
ठीक वैसे ही जैसे नदी बहती हुई भी
अपने प्रवाह के भीतर समंदर में
जा मिलने की वो प्यास भरती है ;
तुम्हारी अंगुलिओं के साथ
अपनी अंगुलिओं को जोड़ कर
अपने अनुराग को शब्द देता हु;
जिन शब्दों को तुम अपनी आँखों की बजाय
अपनी महसूसियत से पढ़ ;
मुस्कुराती हो और मैं उस मुस्कराहट
के प्रतिउत्तर में अपना सबकुछ हा
सच में अपना सबकुछ तुम्हे सौंप देता हु ! ---------
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