Thursday 28 June 2018

विश्वास के धोगो से बुनी डोर

विश्वास के धोगो से बुनी डोर 

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एहसासों की पगडंडियों पर
रिश्तों का कारवां उम्मीदों के
सहारे आगे बढ़ता जाता है ;
जिस दिन एहसास शून्य
होने लगते है उस दिन उम्मीदें
स्वतः ही दम तोड़ने लगती है ;
और ज़िन्दगी की वो ही पगडंडियां
जो कारवों से भरी रहती थी कभी
उमीदों के रहते अचानक सुनसान 
नज़र आने लगती है और ये उम्मीदें
जो दबे पांव आकर हावी हुई रहती है
रिश्तो की डोर पर वो डगमगाने लगती है
लेकिन जो रिश्तों की डोर बुनी होती है
मतलब के धागों से वो टूट जाती है
डोर होती है बुनी विश्वास के धागो से
वो बोझ उठा लेती है उन सभी रिश्तों
की उमीदों का !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !