Monday, 4 June 2018

क्या-क्या सोचा करती थी


क्या-क्या सोचा करती थी
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वो मासूम सी रज्ज 
चहती-फुदकती सी
एक भी दुआ जो
जाया नहीं करती थी
खुद पर उसका बस
चले तो अपने हिस्से
का आशीर्वाद भी
'उसके' नाम लिख दे
यहाँ तलक सोच रखा था
कि जो सितारा बनी
उसके पहले तो भी
उसी की खिड़की पर
आकर टूटेगी और
टूटी सितारा को देखकर
वो मांगेगा एक मुराद,
जिसमे वो होगी शामिल
और वो हो जाएगी पूरी
इस जन्म ना सही अगले
जन्म तो पा लेगी वो उसे
वो मासूम सी रज्ज
अपने राम के लिए
क्या कुछ नहीं सोचा करती थी !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !