Saturday, 16 June 2018

सब समेटने के बाद





सब समेटने के बाद

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चुन-चुन कर
समेट लिया है
तुम्हारी यादों का कारवाँ
और रख लिया उसे
एक पोटली में ...
दिल ने कहा बस
भी करो अब हो गया ना
समेत तो लिया सब कुछ
पर उसकी ना सुनकर
लगाया जोर दिमाग पर
कि कहीं कोई याद
बाकी तो ना रह गयी ...
दिमाग ने भी चुपचाप
लगा दी मुहर और
मार दिया ताना
मुझ पर हँसते हुए
कि सारी यादों को
समेटने के बाद भी
कुछ और क्या है जो
चाहता है समेटना
उसे कैसे कहु की
मैं चाहता हु उस वक़्त
को भी साथ ले जाना
जिसने दी थी हमे
इतनी सुन्दर यादें !


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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !