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रात अँधेरी और काली काली
मेरी आँखों में डाल कर अपनी ऑंखें
पूछती है मुझसे वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनसान राह वीरानी भी थाम कर
हाथ मेरा पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
तेज़ हवाएं ले-ले हिलोरें
खट खटाकर मेरी खिड़कियां
मेरे दरवाज़े पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
एक ओर से आकाश का विशाल आकार
दूसरी ओर से धरती की गहराई
लगा कर जोर-जोर से आवाज़ पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही
अश्क़ों की बूंदें इकट्ठी होकर सभी
भिगोती हुई मुझे पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ
सरसराहट कर पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनो मैं समझता हु तुम्हारी
एक-एक मज़बूरियाँ लेकिन
मेरे लिए ना सही कम से कम
इनका मुँह बंद करने की खातिर
ही आ जाओ ना तुम मेरे पास !
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