Wednesday, 20 June 2018

वो तुमसे दूर क्यूँ है !




वो तुमसे दूर क्यूँ है
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रात अँधेरी और काली काली 
मेरी आँखों में डाल कर अपनी ऑंखें
पूछती है मुझसे वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनसान राह वीरानी भी थाम कर 
हाथ मेरा पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
तेज़ हवाएं ले-ले हिलोरें
खट खटाकर मेरी खिड़कियां 
मेरे दरवाज़े पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
एक ओर से आकाश का विशाल आकार
दूसरी ओर से धरती की गहराई     
लगा कर जोर-जोर से आवाज़ पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही 
अश्क़ों की बूंदें इकट्ठी होकर सभी 
भिगोती हुई मुझे पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ 
सरसराहट कर पूछती है मुझसे 
वो तुमसे दूर क्यूँ है ?
सुनो मैं समझता हु तुम्हारी 
एक-एक मज़बूरियाँ लेकिन 
मेरे लिए ना सही कम से कम 
इनका मुँह बंद करने की खातिर   
ही आ जाओ ना तुम मेरे पास !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !