प्रेम के पल
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क्या बता सकती हो तुम
मुझे कोई ऐसा पल
हमारे प्रेम का जिसका
हमने नहीं किया हो महसूस ;
और कैसे नहीं करते ये बताओ
जबकि उस प्रेम के पल में
कुछ भी तो नहीं होता इस
शरीर के बाहर सारा कुछ
तो सिमट आता है ;
अपने इस तन के अंदर
और समाप्त होते ही उस
पल के कुछ भी नहीं रहता
इस शरीर के अंदर
जैसे सारी महसूसियत
निकल कर उड़ जाती है;
खुले आसमान में अपनी
पहुंच से बहुत दूर !
क्या बता सकती हो तुम
कोई एक ऐसा पल प्रेम का
जो हमने नहीं किया हो महसूस ?
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