देह की महत्ता
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तुम्हारी कहु या कहु मेरीयाददाश्त सबकी ही होती है
कमजोर लेकिन गर बात हो
तन की तो उसकी याददाश्त
तीक्ष्ण ही रहती है सदैव
तुम्हारा कहु या कहु मेरा
मन तो चंचल ही होता है
वो भागता फिरता है
अपनी चाहत की पीछे
लेकिन स्वभाव देह का
होता है स्थिर वो कंही
और कभी जाता नहीं
मन भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव
मन करता है कल्पनाएं और
देह करता है सारी हदें पार
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकनी चाहिए !
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