Wednesday 31 May 2017

शब्द-शब्दों में तलाशते है

शब्द  शब्दों में तलाशते 
है मुझे और मैं
उन शब्दों में तुम्हे
रात ज्यों ज्यों पत्ते सी
सबनम को टटोलती है
चाँद जुगनू सा मंद-मंद
नदी खामोश किनारो को
पकड़ खल-खल बहती हुई
तब दूर कंही सन्नाटों के
जंगल में सुनाई देता है मुझे
कुछ खनकते सब्दो का शोर
थके से किनारो की पगडण्डी
उस छोर की तरफ
तकते बढ़ते दो कदम और
कदमो में थामते है मुझे
और मैं उन कदमो में तुम्हे
शब्द-शब्दों में तलाशते
है मुझे और मैं
उन शब्दों में तुम्हे

बांहो के दर्मिया


सहेज कर एहसास 
में लिपटा वह सूखा
सा फूल दे जाना तुम्हे
और फटे से कागज़
पर लिख जाना तेरा नाम
ना कहने पर भी कुछ
तुम्हारे होंठो का
बेबस हो सुखना
आज वो सब सोचने
को मन कर रहा है
प्रेम की तपीश
क्या दूर रहकर भी
पनपती रहती है ?
अगर हां तो फिर
ये बताओ मुझे तुम
की बांहो के दर्मिया
क्या पनपता है 

बोलो तुम आओगी क्या ?



आज अपने दिल का
हाल सुनाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
चाँद भी देख कर मुझे
पछताया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
रेशा-रेशा दर्द
तुमसे बांटा है मैंने
एक मुद्दत बाद उन्हें
गले लगाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
सब्द दर शब्द
मेरे प्यार के यूही
बरसते रहेंगे और
दिल ने हसरतों का
दरबार आज सजाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?

तेरे मेरे पल

वो तेरे मेरे
साथ के पल
वो हर एक लम्हा
कभी भी नहीं होता
जुड़ा मेरी स्मृति पटल से
एक पल के लिए भी
देखो ना इन
भूरी-भूरी आँखों से
टपकने लगा है
उन लम्हो का नमपन
वो लम्हे जो
महकते है हरपल
अपने सानिध्य की
खुसबू से उन्ही लम्हो ने
बख्सी है "आकांक्षा" हमे

Tuesday 30 May 2017

पहला मिलन अधूरा है

तुम्हारे जाने के बाद
एक कोने में बैठकर 
निहारता रहा मैं युहि
पूरा का पूरा कमरा 
तुम बिखरी हुई थी 
उस हेंगर पर जंहा 
तुम्हारी साड़ी टंगी थी 
चादर की सिलवटों में
सोफे पर जंहा बैठकर 
कुछ पिया था तुमने 
पुरे कमरे की सौंधी महक 
में चाह कर भी नहीं 
समेट पाया था मैं 
और रहने दिया यु ही 
हमेशा-हमेशा के लिए
जेहन में तभी तो आज तक
वो पहला मिलन अधूरा है 
और वो अधूरा मिलन 
मांग कर रहा है और-और
इसलिए जेहन में उसी पहले 
मिलन की तरह बिखरी पड़ी हो
जिसे मैं समेटना ही नहीं चाहता  

एक बस तेरे खातिर

कुछ भी नहीं होता वंहा
जंहा तुम मेरे साथ
नहीं होती हो  ..
अपने सबसे करीब
मौजूद पाया है मैंने सदा
आयी मिलो की दूरियों
के बावजूद भी
तभी तो तुझे रोज
वैसा ही मिलता हु मैं
एक तेरे खातिर बस
इतनी बेबसियों के बावजूद
तुम ही होती हो मुझे
इन सब से रोज रोज
निकाल कर लाने वाली
पकड़कर मेरा हाथ 

तुम मेरे साथ नहीं होती हो ..


कुछ भी नहीं होता वंहा
जंहा तुम मेरे साथ
नहीं होती हो  ..
सन्नाटें की दीवारें
होती है वंहा  ..
तकरार होती है
अजब सी ..
और टूटता बिखरता
हुआ सा होता हु मैं
तारो की टिमटिमाहट
को कभी जलाता
कभी बुझा देता हु
हैरान होती है उलझने भी
बेबस होती है संवेदनाएं
लेकिन इन तमाम
कश्मकश में भी तुम्हे
अपने सबसे करीब
मौजूद पाया है मैंने सदा
आयी मिलो की दूरियों
के बावजूद भी 

कुछ भी नहीं होता वंहा

कुछ भी नहीं होता वंहा
जंहा तुम मेरे साथ
नहीं होती हो  ..
सन्नाटें की दीवारें
होती है वंहा  ..
छत होती है बेक़रारियों की
बेताबियों की  ..
ना जमीन की होती है
हरी परत वंहा  ..
ना होता है आसमान का
नीला नीला आंचल  ..
झूल रहा होता हु मैं
हवाओं के बीच कंही  ..
तुम और तुम्हारी
यादें होती है वंहा  ..
तेज़-तेज़ दौड़ती हुई
धड़कने होती है  ..
मेरे काबू से एकदम बहार
सिलवटें होती है वंहा
अँधेरी रातों की और  ..
मैं होता हु एकदम तनहा
तन्हाईओं की जुबान पर
एक नाम मेरा होता है  ..
और मेरी जुबान पर तेरा

Monday 29 May 2017

तेरे इश्क़ का मौसम



देखो ना मुझे 
खबर भी ना हुई 
और सब कुछ मेरा 
चुरा ले गयी तुम  ..
आँखों के रस्ते से 
कब तुम मेरे दिल 
में समां गयी तुम  ..
अब साँस भी लू तो 
आये सिर्फ तेरी खुसबू  ..
मेरी सारी कायनात को
अपना बना ले गयी तू  ..
है ये मौसम या खुमार  
तेरे इश्क़ का  ..मेरी 
आरज़ू के आसमान पर
इस कदर छा गयी हो तुम ..  
मेरा बस अब मुझपर 
ही चलता नहीं है  ..
अजीब सी हालत और
मुझे पागल बना गयी है तू  ..
मुझे खबर भी ना हुई और
कब इस तन की रूह बन गयी हो तुम 

एक तेरी खातिर  ... 

मैं दिल की बात 
कहता हु  ...
समझौता नहीं करता 
एक तेरी खातिर  ... 
इंसान तो छोड़ो 
खुदा से भी नहीं डरता  ...
बंदिशों में वो रहे 
जिनमे कैद है  ...
राज बड़े गहरे 
मैं तो पागल हु 
दीवाना हु तेरा  ...
सच से कभी 
पर्दा नहीं करता 
और सच ये है की 
मैं तुम्हे बेइंतेहा 
मोहोब्बत करता हु      

भावनाओं की माला




मैं तो सिर्फ 
अपनी सियाही से 
सादे पन्नो पर 
अपने प्रेम की 
बेताब सी लकीरें 
खींचता हु  ...
कुक मुमकिन सी 
आरज़ू करता हु  ...
जीता हु कुछ नेक पल
बेहद खामोश लम्हो में
जिससे सारी अपेक्षाएं
तुम्हारी और मूड जाती है
और फिर तुमसे इकरार 
लिखवा लेती है  ...
उसके बाद जब उसे 
तुमसे सुनता हु मैं 
तो मेरे सामने सब्दो की 
भावनाओं से लदी एक 
माला प्रस्तुत होती है 
जिसे मैं तुम्हे पहना जाता हु 

बेताब सी लकीरें



मैं तो सिर्फ 
अपनी सियाही से
सादे पन्नो पर
अपने प्रेम की
बेताब सी लकीरें
खींचता हु  ...
कुछ अपनी कल्पनाओ
के आकर्षक मोती
हर्फो के रूप में
पिरोता हु किरदार
में मोहोब्बत बनकर जीने की
उसके हालात को भांपने की
भावनाओ को जीवित
रखने की एक कोशिश
करता रहता हु  ...
उस कोशिश को बल मिलता है
जब तुम उन भावनाओ
को समझती हो
सपनी को सहेज कर
विस्तार में रख लेता हु
कुछ हकीकत के परिंदे
तेरे ही जेहन में छोड़ आता हु 

Friday 26 May 2017

तुम्हारे नाम लिखे 

तुम्हारे नाम लिखे 
मेरे सारे खत मैं 
आज भी दराज़ में 
से निकालने में डरता हु 
कंही मेरे ही लब्जो में
मैं खो ना जांऊ इसलिए 
नज़रअंदाज़ कर के 
उस दराज़ के पास से 
जब भी गुजरता हु 
तुम्हारे नाम लिखे वो
मेरे सारे खत आवाज़ कर
मेरा ध्यान खींचने की 
कोशिश करते है अंदर से ही 
पर दिल को समझाता हु 
और आगे निकल जाता हु 
उन्हें उसी दराज़ में छोड़ कर 
डरता हु की कंही पढ़ा उनको 
फिर से तो वो हंसी पल 
मेरी आँखों के सामने 
होंगे और मैं तुम्हे पाने को 
फिर एक बार तड़प उठूंगा        

एक एक लम्हे को जी लेता हु 

मैं एक कुम्हार 
की तरह ही 
हर रोज गढ़ता हु 
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु 
वक़्त भले ही तेज़ी से 
बढ़ता जा रहा है आगे 
लेकिन मैं फिर भी अपनी
कलाई पर घडी की तरह 
बांध लेता हु वक़्त को 
भले ही एक अरसा 
गुजर गया हो उन 
हंसी लम्हो को पर
मैं तुम्हारे साथ 
एक एक लम्हे में 
कई जन्म जी लेता हु 

हर पल तुम्हारे साथ

मैं एक कुम्हार 
की तरह ही 
हर रोज गढ़ता हु 
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु   
और भले ही वक़्त 
वक़्त के साथ कमज़ोर 
पड़ने लगे मेरी नज़र 
पर मैं तुम्हारी आँखों में
कुछ धुंधला सा भी 
पढ़ ही लूंगा और मैं
हर पल तुम्हारे साथ 
गुजरे लम्हो को संजोता रहूँगा   
मुझे अब भी लगता है 
मैंने पूरी सिद्दत से तुम्हे
नहीं चाहा है और इसी 
चाहत में मैं मेरी सिद्दत
को और उंचाईओं पर 
ले जाना चाहता हु 

हर रोज गढ़ता हु तुम्हारे ख्याल


मैं एक कुम्हार 
की तरह ही 
हर रोज गढ़ता हु 
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु 
भले गुजर गए हो         
चार साल हमारे इस
रिश्ते को लेकिन 
मैं आज भी कुछ ना कुछ
तुझमे नया ढूंढ ही लेता हु 
मैं हर रोज यु ही 
तुम्हारी आँखों को पढता हु 
खामोश रहती है वो 
पर मैं उसके सारे 
राज समझ लेता हु
मुझे अभी भी लगता है 
मैंने तुम्हे नहीं देखा है 
पूरी तरह और प्यास मेरी
अब भी अधूरी है 

Thursday 25 May 2017

तुम जब जाती हो दूर



आज अपने ही 
सब्दो को समेटते 
हुए पूछ रहा हु  ...
की ये तुझे सँभालते है 
या तुझे भी खुद में 
बिखेर लेते है  ...
गर मेरे साथ है 
मेरे सब्द तो किन्यु
कई मोड़ पर ये मुझे
तन्हा छोड़ देते है। ....
अब जब पूछा इनसे 
तो कोई जवाब नहीं दिया 
इन मेरे ही सब्दो ने मुझे  ...
या यु कंहू जो जवाब था
उसके लिए मेरे ही सब्दो 
के पास सब्द नहीं थे  ...
उन्होंने भी कहा वो 
निकलते है तुझसे और 
नाम मेरा कर जाते है  ...
तुम जब जाती हो दूर
मुझसे तो सब्द भी तुम्हारे
साथ ही चले जाते है  ....

अपने सारे ख्वाब


मैंने कहा था तुम्हे 
एक दिन कुछ देर 
तुम्हारे हाथो को थामकर 
तुम्हारे सारे दर्द मैं ले लूंगा  ..
एक दिन तुम्हारे सीने 
पर अपना सर रख 
तुम्हारी धड़कनो को अपने
सारे के सारे सुर दे दूंगा  ...
एक दिन तुम्हारी पलकों को 
अपने होंठो से छूकर 
अपने सारे ख्वाब तुम्हे दे दूंगा  ..
एक दिन तुम्हे अपने गले 
लगाकर सारे एहसास अपने
मैं तुम्हे दे दूंगा  ...
एक दिन तुम्हारी आँखों 
में देखकर कह दूंगा  ..
प्यार मैं सिर्फ एक तुम्ही   
से करता हु और अपना
सारा विस्वाश तुम्हे दे दूंगा  ...

अपना विस्वाश तुम्हे दे दिया   ...


उस एक दिन जो 
मैंने कहा था तुम्हे 
तुम्हारे हाथो को थामकर 
वो सब मैंने पूरा किया 
तुम्हारे दर्द भी लिए
अपने सुर भी तुम्हे दिए
तुम्हारी पलकों पर अपने
सारे ख्वाब भी रख दिए 
गले लगाकर अपने सारे 
एहसास भी तुम्हे दे दिए
और तुम्हारी आँखों में 
आँखे अपनी डाल कर
कह भी दिया प्यार 
मैं सिर्फ एक तुम्ही   
से करता हु प्यार और अपना
सारा विस्वाश तुम्हे दे दिया   ...
पर ये क्या जब तुम्हारी 
बारी आयी तो तुम 
यंहा हो ही नहीं ? किन्यु    

महका महका सा आलम


सच कहु तो 
अच्छा लगता है
मुझे तुम्हारे सामने
बिखरना उफ़ कितना
पागल हु ना मैं
समझ ना पाया
तेरी बातों को
तभी कहु आज
महका महका
सा आलम किन्यु है
चारो और मेरे इतनी
खुसबू किन्यु है
हां तेरे प्यार ने
ली है अंगड़ाई
तभी चारो और देखो
बहार है खिल आयी  

Wednesday 24 May 2017

बिलकुल तेरे जैसा हु 

सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 
तू समेट ले मुझे अब
अपनी आँखों में तेरे सामने 
बिखरना मुझे बड़ा अच्छा लगता है 
मैं कोई देव या देवता नहीं 
उतर कर आया हु तेरे लिए 
बिलकुल तेरे जैसा हु 
तूने जो लगाया गले से तो 
मैं तेरे गले का मोती बन गया 
सजा लिया तूने जो अंगुली में 
तो मैं तेरा प्यार बन गया 
सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 

तुम्हारे सामने बिखरना 

सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 
तुम जब समेटती हो और
जिस तरह समेटती हो 
मुझे वो मेरे दिल को भाता है 
एक सा तापमान नहीं रहता सदा 
जब पिघलना होता है 
तो बर्फ सा जम जाता हु 
जब जमना होता है तो
तेरे एक हलके से एहसास से 
पिघल जाता हु मैं 
ये तेरा टूटकर मुझे चाहना 
मुझे बहुत भाता है 
सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 

आभार तुम्हारा


सोच रहा हु 
आज कुछ पुराना लिखू
तुम और मैं कैसे मिले
कैसे बात हुई हमारी
कैसे मैंने तुम्हे मनाया
कैसे और क्या क्या
कर तुम्हे अपना बनाया
दिल भी तुम्हारे ही
ज़ज़्बातों से भरा रहता है
अब सिर्फ दिल में ही नहीं
तुम तो मेरी रूह में समायी रहती हो
तभी तो मेरी यादो की हद्द
से तुम कभी एक पल को भी
दूर नहीं जा पाती हो
आभार तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी
जो तुम मेरी ज़िन्दगी बन
मेरे जीवन में आयी

आज कुछ पुराना लिखू


सोच रहा हु 
आज कुछ पुराना लिखू 
तुम और मैं कैसे मिले
कैसे बात हुई हमारी 
कैसे मैंने तुम्हे मनाया
कैसे और क्या क्या 
कर तुम्हे अपना बनाया 
पहले लगता था डर
तुझसे बिछुड़ने का 
अब उस डर को कंही 
दूर पहाड़ियों में छोड़ आया हु 
अब तो हर वक़्त यही 
एहसास साथ रहता है
तुम रहती हो हर वक़्त
पास मेरे बिलकुल पास 
तुम्हारी कसम अब इस 
सफर में हम दोनों 
साथ-साथ बहुत दूर 
निकल आये है 
सोच रहा हु तुम्हे सब
आज बताओ 

तुम्हे सब आज बताऊ


सोच रहा हु 
आज कुछ पुराना लिखू 
तुम और मैं कैसे मिले
कैसे बात हुई हमारी 
कैसे मैंने तुम्हे मनाया
कैसे और क्या क्या 
कर तुम्हे अपना बनाया 
कौन-कौन सी और कब-कब
तुमने शैतानिया की
कभी कभी रुलाया
और कभी अपार खुशिया दी
तुम्हारी कसम अब इस 
सफर में हम दोनों 
साथ-साथ बहुत दूर 
निकल आये है 
सोच रहा हु तुम्हे सब
आज बताओ 

Tuesday 23 May 2017

एक-एक रंग तेरा





अपने प्रेम के बीज
मुट्ठी में बंद कर
बो दिए मैंने
उदास सी रज्ज में
स्वप्न भरे प्रेम के बीज
रज्ज की कोख में
एक-एक कर के
बोये है सब बीज
कुछ यु ही हथेली
में रख धरा पर
बिखरा दिए इस उम्मीद
में की एक दिन जरूर
नवांकुर फूटेंगे रंग
भरे बीजो से फिर
खिल जाएगी उदास सी रज्ज
एक-एक रंग तेरा
खिलेगा प्रेम के रंग भरी
चुनार ओढ़ प्रेम की
खिलखिला उठेगी
रज्ज मेरी 

आ जाओ तुम





इश्क़ में तेरे 
बदल लिया है भेष
फिरता हु दर-दर
मन्नत को तेरी
दरस और संग
को तेरे तरसे
है नैन मेरे
बस एक बार
आ जाओ तुम
तर जाऊं मैं
वेद पुराण सब
पीछे छोड़ लेता
हु बस एक तेरा नाम 

इस्त्री प्रेम पुरुष





मैंने कई बार और
कई जगह देखा है
दो ईंटो के बीच से
अंकुर को फूटते हुए
दीवारों पर पीपल
को उगते हुए भी
जो मेरी नज़र में
बस यही कहता है
जंहा जरा से मिटटी थी
जंहा जरा सी धुप थी
जहा जरा सी नमी थी
वहा वहा एक अंकुर
का अस्तित्व था
जहा भी मिटटी धुप
और पानी था  ...
ये ही स्वभाव है प्रेम का
और सदा रहेगा
इस्त्री - मिटटी
पुरुष-धुप
प्रेम-पानी     




रूह को चैन मिले







लिख दो तुम 
मेरे मन माफिक
कोई बात या एक
उम्दा सी कविता
गीत या कुछ भी
जिसे पढ़कर मिले
मेरे दिल को सकूँ
रूह को चैन मिले
आ जाए मन में गुरुर
दिन मेरा सुहाना हो जाए
सुनकर तुम्हारी बात
और सबकुछ फिर से
अच्छा लगने लगे 

Monday 22 May 2017

मन चाहे सब्द 



बिखरे हुए 
अक्षर चुनकर 
बना लेता हु 
मन चाहे सब्द 
मनचाहे सब्दो की 
कड़ी बुन देती है 
तेरे भावो की 
ज़ंज़ीर इस ज़ंज़ीर में
भर देता हु मैं 
मेरे प्रेम का रंग 
और बना देता हु 
तेरे रंगो के रंग 
भरी एक रचना 






मेरी रूह का हिस्सा है



सहेज कर रखा है 
तुमने मुझे अपनी 
ही हथेलिओं में 
खुसनसीब हु मैं 
जो मिला है तुम्हारा 
इतना प्यार दुलार 
खुद को दुनिया का 
सबसे दौलतमंद इंसान
मानता हु मैं 
मिला है जो साथ 
तुम्हारा तो खुद को भी 
पहचान पाता हु
तुम्हारे बिना तो 
दुनिया ही वीरान नज़र
आने लगती है 
यु ही करती रहना प्यार 
किँयोकि प्यार तेरा 
मेरी रूह का हिस्सा है 

जब तुम कंठ लगाती हो










सच कहा तुमने 
सब्द बोलते है मेरे
लेकिन कब क्या 
पता है तुम्हे ?
जब तुम उन्हें 
कंठ लगाती हो 
मुखर हो उठते है वो
जब प्यार से उन्हें
सहला देती हो तुम 
जाग जाते है वो 
नींद से और सारा 
खुमार उतर जाता है उनका
जीने लगते है वो
तुम्हारे कंठ से वो
भावो सहित कह उठते है 
उतर जाते है वो 
तेरे हृदय में फिर से 
एक बार अपना जीवन
जीने को उत्सुक हो उठते है 

तेरी पलकों के केशु






कई बार 
हथेली पर लेकर 
तेरी पलकों के केशु
मांगता ही तुझे ही 
ईश्वर से 
तब नहीं बताया था तुझे 
किँयोकि तुझसे ही सुना था
बताने से ख़त्म हो जाता है
असर मुरादों का इसलिए
डरता था बताने में आज तक 
कंही खो ना दू अपनी 
मुरादों  को कंही मैं और ये भी 
जानता हु मैं निश्चिंतता अक्सर
गर्माहट ख़त्म कर देती है 

यही अनकहा 






पीछे से टिकाया 
जो मैंने  ...
तुम्हारी पीठ पर 
अपना सर  ...
सकूँ सा मुझे मिला 
तुम्हे भी लगा 
अपनापन सा  ...
महसूस कर सकती हो तुम 
अब मेरे दिल की 
हर एक बात जो 
अब तक नहीं कही थी मैंने 
अब तो सहलाकर मेरे बालो को 
तुमने भी दे दी है मुझे" हामी "
जैसे समझ गयी हो तुम 
मेरा अनकहा झट से 
शायद यही अनकहा 
आज भी काम आ रहा है 
मिलो दूर हो तुम मुझसे
फिर भी तुम्हारा
एहसास मुझे महका रहा है   

Saturday 20 May 2017

आओ पास तुम मेरे



दिल की धड़कन 
मैं थाम कर बैठा हु
इंतज़ार में तेरे जब 
आओगी पास तुम मेरे 
तो दिखाऊंगा कितनी 
चाहत है मुझे तुमसे 
प्यास को मेरी संभाले 
बैठा हु  एक वादे पे तेरे 
जब आओगी पास तुम मेरे
तो बताऊंगा तुम्हे 
पतझड़ में भी 
बहार है तुमसे 

इंतज़ार में तेरे 











सांसें अपनी थामे 
बैठा हु मैं इंतज़ार 
में तेरे जब आओगी
पास तुम मेरे 
तो दिखाऊंगा तुम्हे
मेरी हर साँस कैसे
चलती है तुमसे 
अपनी पलकें बिछाये 
बैठा हु एक 
इंतज़ार में तेरे 
जब आओगी पास 
तुम तुम मेरे  
तो बतलाऊंगा तुम्हे 
मुझे कितनी चाहत 
है तुमसे 

बून्द बून्द प्यार









तेरे आलिंगन में 
सिमटता फैलता 
सा मैं  ...
हर साँस तेरी
अपनी सांसो में 
लेता हु समेट मैं 
बून्द बून्द मेरे 
प्यार की तेरी 
रूह में उढेल 
देता हु मैं 
और मरते मरते 
एक बार फिर से 
जी लेता हु मैं 

सिमटता फैलता सा मैं







तेरे आलिंगन में 
सिमटता फैलता 
सा मैं  ...मरते 
मरते थोड़ा सा 
और जी लेता 
हु मैं  ..कुछ
पल का मिलन 
फिर पूरी रात 
और दिन का 
बिछुड़ना जैसे 
लहरों का किसी 
साहिल से दूर जाना 
फिर मिलने की 
चाह में तेरी ये 
बिछुड़न कैसे सहता
हु मैं क्या कभी 
महसूस पायी हो तुम ?

Friday 19 May 2017

प्रेम नहीं होता बुलबुले की तरह








प्रेम नहीं होता 
पानी के बुलबुले
की तरह कभी भी 
जिसे  थोड़ी सी ठेस 
लगे और गुम........
और उसे छुपा कर 
रखना पड़े एक छोटी सी
कांच की पिटारी में जिसे 
जब इक्षा हो देखने की 
वो पिटारी खोल लो 
और देखो प्रेम को 
बुलबुले के स्वरुप में 
पर ये दर तो सदा 
बना ही रहेगा की 
कभी खोलू जब पिटारी 
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
इस डर से सदा ही 
रखना पड़ेगा गरम हवाओं को
नम अपने आंसुओं से  ..........

सिर्फ एक बार






सुनो ना ...!!
सिर्फ एक बार 
चले आओ ना ,
जरा एक बार 
सिर्फ एक बार
मुड़ के तो देखो ना ....
मैं अभी भी तुम्हारी 
राह ताक रहा हूँ ,
अपनी पलकें बिछाए .........
तुम्हारे बिन यंहा 
सूना-सूना है  सब,
जीने का अर्थ ही 
क्या रह जायेगा
तुम बिन ,मेरा ........
सिर्फ एक बार 
चले आओ ना ,

प्रेम में प्रतीक्षा की सीमा








मैं तुम्हे सदैव 
पुकारना चाहता हु 
संसार की समस्त 
बोलियों और भाषाओँ में
मैं दुनिया की हर एक 
भाषा में तुम्हारे नाम 
का अनुवाद करना चाहता हु 
और साथ ही उन तमाम 
भाषाओँ में प्रेम और प्रतीक्षा 
के प्रयाय खोजकर 
उन सबका उच्चारण 
अपनी आवाज़ में 
करना चाहता हु
और देखना चाहता हु 
प्रेम में प्रतीक्षा की सीमा
कंही बताई गयी है या 
सभी भाषाओँ और बोलियों
में भी प्रतीक्षा की कोई 
सीमा तय नहीं की गयी 

कामना सिर्फ एक तुम्हारी 









मैं तुम्हे सदैव 
पुकारना चाहता हु 
संसार की समस्त 
बोलियों और भाषाओँ में
मैं दुनिया की हर एक 
भाषा में तुम्हारे नाम 
का अनुवाद करना चाहता हु 
ताकि उससे हज़ारो 
लाखो शब्दों में प्रेम 
करोड़ों सब्दो में प्रतीक्षा 
और कामना सिर्फ एक तुम्हारी 
करना चाहता हु 

चाँद के साथ खेलूंगा





तुम कैसे भी 
करो प्यार या 
निभाओ अपनी प्रीत 
मैं तो यु ही 
आता रहूँगा अँधेरी
और काली रातो में 
और चाँद के साथ
खेलूंगा छुपम छुपाई  
तुम्हारी छत पर 
और चारो ऋतुओं 
के फूल यु ही 
छोड़ कर जाता रहूँगा
तुम्हारी छत पर
तुम्हारे लिए 

Thursday 18 May 2017

एक नया इतिहास









मेरा मन अब
शून्य हो गया है 
निराकार सा जंहा
बजती है घंटिया 
रह-रह कर किसी 
प्रसिद्द मंदिर की 
घंटियों की तरह
उस वक़्त ब्रह्माण्ड
रचने लगता है 
एक नया संसार 
एक नवजात "प्रखर"
लेता है जन्म
किलकारियां लेता 
गर्भ के बाहर 
रचने इस प्रेम का 
एक नया इतिहास 

सफर पूरा करना चाहता था











जानता था पूरा ना होगा
फिर भी ये ख्वाब देखना 
चाहता था अपनी सुनहरी 
यादों की किताब में,
ये अनुभव भी समेटना 
चाहता था अंदाजा था मुझे... 
है ये क्षणिक, जल्द ही टूटेगा 
और कल बनेगा वजह तक्लीफ की
इसलिये जी भर कर तेरे साथ 
हंस लेना चाहता था ये जानते हुए भी 
की पुरे न होंगे ये ख्वाब  
फिर भी ये ख्वाब देखना चाहता था 
ख्वाब में था मैं और धुंधला सा 
एक साया था साथ मेरे  
धीरे से आगे बढ कर जिसने 
हाथों में लिया था हाथ मेरा 
इस छुअन को बखूबी पहचानता था 
और सच के धरातल पर कभी 
महसूस ना कर पाऊंगा इसे,
ये भी मानता था 
मगर... ख्वाब में ही सही,
ये सफर पूरा करना चाहता था मैं 

'रब से मन्नत'










मैं उसे पाने को 
'रब से मन्नत'
और ज़माने से
इल्तिज़ा किया करता हूं
मैं कुछ अपनों और
कुछ परायों का दिल
अक्सर ही दुखाया
करता हु अब तो
अक्सर ही मैं अँधेरे
में उससे बातें किया करता हु
अब हासिल नहीं हुआ
कुछ भी इस ज़िद्द से
फिर भी ना जाने किन्यु
ये एक ज़िद्द दुआ की
तरह किया करता हु
समझाते है सभी अक्सर
गर मेरी है वो तो
कंही जा नहीं सकती
गर परायी है तो तुम
पा नहीं सकते पर
ना जाने किन्यु ये ज़िद्द
दुआ की तरह किया करता हु  

हृदय की आवाज़




हर्फ़ नहीं
आवाज़ हो तुम
मेरी कविता की
मेरी सांसो की
मेरे भावो की
मेरी ख्वाहिशो की  
एक अनुगूँज
झंकृत करती
उस कारा को
बंदी है जिसमें
रूह मेरी अब तक
रक्ताक्त हो गयी हैं
अँगुलियाँ मेरी
खटखटाते तुम्हारे
दिल के दरवाज़े
पर जारी है मेरी
कोशिश तुम्हे
जगाने की मेरे
हृदय की आवाज़ हो तुम

प्रश्नचिन्ह











तुम आती हो 
मेरे जीवन में 
एक दिवास्वप्न 
की ही तरह और  
और छोड़ जाती हो 
कई प्रश्नचिन्ह मेरी 
आँखों के कोरों पर 
स्वप्न टूट जाता है ; 
प्रश्न चुभने लगते हैं 
मैं अपने आंसू की 
हर बूँद पर डाल 
देता हूँ एक मुठ्ठी रेत
सिर्फ तुम्हे सही 
ठहराने की खातिर  
थोड़ा और भारी 
हो उठता है मन 
पहले से और तैरने 
लगते हैं कई सवाल 
मेरे जेहन में की 
आखिर किन्यु मैं
तुम्हारी हर गलती 
और मज़बूरिओ पर
आज तक रेत डालते 
आया हु 

Wednesday 17 May 2017

मैं तुम्हारे लिए दरवाज़े बंद कर देता हु








कभी - कभी जब ,
मैं तुम्हारे `लिए
दरवाज़े बंद कर देता हु ,
तो अक्सर
तेरी ही आहट का
इंतजार क्यूँ करने लगता हु  ....
क्यूँ ...!
हवा में हिलते , सरसराते
पर्दों को थाम ,
उनके पीछे ,
तेरे होने की चाह
रखता हु  .....
और क्यूँ ...!
अक्सर खिड़की बंद करने
के बहाने से
दूर सड़क को ताकता
रहता हु ,सिर्फ
तुझी को आते हुए
देखने की चाह में ..........!

मैं करूँगा हर एक हक़ अदा








मैं करूँगा हक़ 
अदा हर एक
एहसान का..
हर उस शख़्स का
जो मेरी ज़िंदगी से जुडा,
जो मेरा मेहमान था...
मगर मेरे ग़म की
जागीर उनके पास
बतौर निशानी नहीं रहेगी ?
ये मेरे हिस्से के आंसू हैं,
मेरे रिश्तों से मिले...
इन आंसुओं में
उनका कोई हिस्सा  नहीं ?
मैं करूँगा हर एक
हक़ अदा ज़िंन्दगी
तेरा भी चाहे तू
मेरे पास रहे ना रहे 





प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !