Friday, 5 May 2017

प्रकाश तुम्हारा मुझ तक





आस मन में करवट
बदलती रहती है ,
तुम दरिया में सहरा,
तुम्हे पाऊ तुम्हारे पास जाऊ,
कैसे मगर कैसे ,
मै फूल घने जंगल का,
आती नही एक किरण जहाँ
देखती हूँ एक बिंदू ,
चमकता हुआ,
घने जंगल के ऊपर,
प्रकाश तुम्हारा मुझ तक ,
कभी न पहुँच पायेगा,
बस आस है ,हर साँस है
कभी तो आखिर कभी तो,
होगा कुछ ऐसा,
तेरी किरण मुझ तक ,
आ जायेगी,

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !