Wednesday, 31 May 2017

बोलो तुम आओगी क्या ?



आज अपने दिल का
हाल सुनाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
चाँद भी देख कर मुझे
पछताया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
रेशा-रेशा दर्द
तुमसे बांटा है मैंने
एक मुद्दत बाद उन्हें
गले लगाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?
सब्द दर शब्द
मेरे प्यार के यूही
बरसते रहेंगे और
दिल ने हसरतों का
दरबार आज सजाया है
बोलो तुम आओगी क्या ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !