Thursday, 18 May 2017

'रब से मन्नत'










मैं उसे पाने को 
'रब से मन्नत'
और ज़माने से
इल्तिज़ा किया करता हूं
मैं कुछ अपनों और
कुछ परायों का दिल
अक्सर ही दुखाया
करता हु अब तो
अक्सर ही मैं अँधेरे
में उससे बातें किया करता हु
अब हासिल नहीं हुआ
कुछ भी इस ज़िद्द से
फिर भी ना जाने किन्यु
ये एक ज़िद्द दुआ की
तरह किया करता हु
समझाते है सभी अक्सर
गर मेरी है वो तो
कंही जा नहीं सकती
गर परायी है तो तुम
पा नहीं सकते पर
ना जाने किन्यु ये ज़िद्द
दुआ की तरह किया करता हु  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !