Saturday, 13 May 2017

ज़िंदगी की किताब










पढ़ रहा हूँ
ज़िंदगी की किताब
आहिस्ता आहिस्ता
हर्फ़ -दर-हर्फ़ 
पन्ना-दर पन्ना
लफ्ज़-बा -लफ्ज़...
हर एक बात दिल 
को छूती हुई...
हर एक बात जैसे 
बस दिल की
पर क्या सिर्फ ये
बातें मेरे ही दिल को 
छूती है तुम्हारे दिल
को नहीं छूती

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !