जानता था पूरा ना होगा
फिर भी ये ख्वाब देखना
चाहता था अपनी सुनहरी
यादों की किताब में,
ये अनुभव भी समेटना
चाहता था अंदाजा था मुझे...
है ये क्षणिक, जल्द ही टूटेगा
और कल बनेगा वजह तक्लीफ की
इसलिये जी भर कर तेरे साथ
हंस लेना चाहता था ये जानते हुए भी
की पुरे न होंगे ये ख्वाब
फिर भी ये ख्वाब देखना चाहता था
ख्वाब में था मैं और धुंधला सा
एक साया था साथ मेरे
धीरे से आगे बढ कर जिसने
हाथों में लिया था हाथ मेरा
इस छुअन को बखूबी पहचानता था
और सच के धरातल पर कभी
महसूस ना कर पाऊंगा इसे,
ये भी मानता था
मगर... ख्वाब में ही सही,
ये सफर पूरा करना चाहता था मैं
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