Tuesday 9 May 2017

धुंवा धुंवा










कभी-कभी सुबह 
खिड़कियों से आती रोशनी
अच्छी नहीं लगती
मैं रहना चाहता हूँ
अंधेरे में बस
और थोड़ी देर,
इस अंधेरे को
अपने अंदर
खीच लेना चाहता हूँ
सिगरेट के उस
आख़िरी कश की तरह....
जो फेफड़े को पूरी
तरह करता है
धुंवा धुंवा 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !