Tuesday 16 May 2017

मैं थी अधूरी







हां मैं थी अधूरी
तुमसे मिलने के पहले
खुद में ही सिमटी हुई
पाकार तुम्हारा स्पर्श
खिल उठा मेरा रोम-रोम
एक काली की मानिंद
झुक सी गयी मेरी नज़र
सुबती सी गयी हया
के समंदर में
मेरे एहसास हुए तब्दील
तेरे प्यार के रंग में
कंचन सी हो गयी मेरी काया
सोने सा दमक उठा
मेरा तन और मन
हो गया बेकाबू
एक तुम्हारे स्पर्श से 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !