एक सवाल
बार बार आता है
मेरे मन में
कि क्या तब भी
तुम मुझे चाहोगी ?
जब ... आँखों के
चारो ओर छा जाएगी
बीतती उम्र की परछाईयाँ..
और उड़ान कह देगी
मेरे "सपनो के परों "
को अलविदा
शब्द जो अभी
पहचान है मेरे प्रेम के
जब रूठ जायेंगे वो
मेरी कविताओं से
पड़ जायेगा रंग फीका
मेरी लिखी सियाही का
तो क्या तब भी मेरी कविताओं को
गुंगुनायेगी के दोहराओगी मुझे
सोच में हूँ क्या तब भी
मुझे यूँ ही चाहोगी ?
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