Wednesday, 17 May 2017

उजाले की पहली किरण










उजाले की पहली 
किरण से गोधूलि
की सांझ तक...
पानी की शीतलता से
अग्नि की आंच तक...
मिथ्या की संतुष्टि से
सत्य की प्यास तक...
विछोह की पीडा से
मिलने की आस तक...
जीवन के प्रारम्भ से
म्रत्यु की अंतिम सांस तक...
मैं खुद को तेरी हंसी के
उजले सवेरे में देखा करता हूं
मैं खुद को तेरे कल के
बसेरे में देखा करता हूं

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !