Wednesday, 24 May 2017

तुम्हारे सामने बिखरना 

सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 
तुम जब समेटती हो और
जिस तरह समेटती हो 
मुझे वो मेरे दिल को भाता है 
एक सा तापमान नहीं रहता सदा 
जब पिघलना होता है 
तो बर्फ सा जम जाता हु 
जब जमना होता है तो
तेरे एक हलके से एहसास से 
पिघल जाता हु मैं 
ये तेरा टूटकर मुझे चाहना 
मुझे बहुत भाता है 
सच कहु तो 
अच्छा लगता है मुझे
तुम्हारे सामने बिखरना 

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !