मैं तो सिर्फ
अपनी सियाही से
सादे पन्नो पर
अपने प्रेम की
बेताब सी लकीरें
खींचता हु ...
कुक मुमकिन सी
आरज़ू करता हु ...
जीता हु कुछ नेक पल
बेहद खामोश लम्हो में
जिससे सारी अपेक्षाएं
तुम्हारी और मूड जाती है
और फिर तुमसे इकरार
लिखवा लेती है ...
उसके बाद जब उसे
तुमसे सुनता हु मैं
तो मेरे सामने सब्दो की
भावनाओं से लदी एक
माला प्रस्तुत होती है
जिसे मैं तुम्हे पहना जाता हु
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