सच कहूँ तो तुम्हारी
बहुत याद आती है,
यहाँ इस शहर में एक
तुम्हीं तो हो जिससे
चार बातें करके ज़िंदा
होने का एहसास होता है...
वरना तो अधिकतर
दुनिया अपना स्वार्थ
साधने में जुटी है...
ऑनलाइन भी किसी से
बात करना चाहो तो
सब बेगाने से लगते हैं,
फुर्सत ही फुर्सत है
सबके पास ...और
पुरानी तस्वीरें पलटता हूँ तो
आँखों के कोर नम होने लगते हैं,
ऐसा लगता है किसी
बेगाने से शहर में आकर बस गया हूँ...
एक तुम्हारे बिना पूरा शहर
बेगाना सा लगता है
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