Friday, 26 May 2017

तुम्हारे नाम लिखे 

तुम्हारे नाम लिखे 
मेरे सारे खत मैं 
आज भी दराज़ में 
से निकालने में डरता हु 
कंही मेरे ही लब्जो में
मैं खो ना जांऊ इसलिए 
नज़रअंदाज़ कर के 
उस दराज़ के पास से 
जब भी गुजरता हु 
तुम्हारे नाम लिखे वो
मेरे सारे खत आवाज़ कर
मेरा ध्यान खींचने की 
कोशिश करते है अंदर से ही 
पर दिल को समझाता हु 
और आगे निकल जाता हु 
उन्हें उसी दराज़ में छोड़ कर 
डरता हु की कंही पढ़ा उनको 
फिर से तो वो हंसी पल 
मेरी आँखों के सामने 
होंगे और मैं तुम्हे पाने को 
फिर एक बार तड़प उठूंगा        

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !