मैं एक कुम्हार
की तरह ही
हर रोज गढ़ता हु
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु
भले गुजर गए हो
चार साल हमारे इस
रिश्ते को लेकिन
मैं आज भी कुछ ना कुछ
तुझमे नया ढूंढ ही लेता हु
मैं हर रोज यु ही
तुम्हारी आँखों को पढता हु
खामोश रहती है वो
पर मैं उसके सारे
राज समझ लेता हु
मुझे अभी भी लगता है
मैंने तुम्हे नहीं देखा है
पूरी तरह और प्यास मेरी
अब भी अधूरी है
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