Friday, 26 May 2017

हर रोज गढ़ता हु तुम्हारे ख्याल


मैं एक कुम्हार 
की तरह ही 
हर रोज गढ़ता हु 
तुम्हारे ख्यालो के
सब्दो को और एक
नयी आकृति देता हु 
भले गुजर गए हो         
चार साल हमारे इस
रिश्ते को लेकिन 
मैं आज भी कुछ ना कुछ
तुझमे नया ढूंढ ही लेता हु 
मैं हर रोज यु ही 
तुम्हारी आँखों को पढता हु 
खामोश रहती है वो 
पर मैं उसके सारे 
राज समझ लेता हु
मुझे अभी भी लगता है 
मैंने तुम्हे नहीं देखा है 
पूरी तरह और प्यास मेरी
अब भी अधूरी है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !