Tuesday 16 May 2017

तुम और ये रात





लेकिन ना जाने किन्यु
तुम और ये रात होती 
हो इतनी जल्दी में 
मेरी लाख मिन्नतों के
बाद भी कोई भी पल 
एक पल से लम्बा होता ही नहीं 
भागी चली जाती हो तुम 
और ये रात मेरे सपनों को रौंद कर 
और बिखेर देती है 
सूरज की रौशनी मेरे कमरे में 
मनो तुमने फैला दिया हो 
अपना सिन्दूर जाने के पहले
पुरे कमरे में शायद तुम 
नहीं चाहती लोग देखे तुम्हे 
मेरे रंग में रंगे हुए और
उसी पल टूट जाते है मेरे 
सारे सपने

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !