लेकिन ना जाने किन्यु
तुम और ये रात होती
हो इतनी जल्दी में
मेरी लाख मिन्नतों के
बाद भी कोई भी पल
एक पल से लम्बा होता ही नहीं
भागी चली जाती हो तुम
और ये रात मेरे सपनों को रौंद कर
और बिखेर देती है
सूरज की रौशनी मेरे कमरे में
मनो तुमने फैला दिया हो
अपना सिन्दूर जाने के पहले
पुरे कमरे में शायद तुम
नहीं चाहती लोग देखे तुम्हे
मेरे रंग में रंगे हुए और
उसी पल टूट जाते है मेरे
सारे सपने
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