Friday, 19 May 2017

चाँद के साथ खेलूंगा





तुम कैसे भी 
करो प्यार या 
निभाओ अपनी प्रीत 
मैं तो यु ही 
आता रहूँगा अँधेरी
और काली रातो में 
और चाँद के साथ
खेलूंगा छुपम छुपाई  
तुम्हारी छत पर 
और चारो ऋतुओं 
के फूल यु ही 
छोड़ कर जाता रहूँगा
तुम्हारी छत पर
तुम्हारे लिए 

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !