Tuesday 30 May 2017

कुछ भी नहीं होता वंहा

कुछ भी नहीं होता वंहा
जंहा तुम मेरे साथ
नहीं होती हो  ..
सन्नाटें की दीवारें
होती है वंहा  ..
छत होती है बेक़रारियों की
बेताबियों की  ..
ना जमीन की होती है
हरी परत वंहा  ..
ना होता है आसमान का
नीला नीला आंचल  ..
झूल रहा होता हु मैं
हवाओं के बीच कंही  ..
तुम और तुम्हारी
यादें होती है वंहा  ..
तेज़-तेज़ दौड़ती हुई
धड़कने होती है  ..
मेरे काबू से एकदम बहार
सिलवटें होती है वंहा
अँधेरी रातों की और  ..
मैं होता हु एकदम तनहा
तन्हाईओं की जुबान पर
एक नाम मेरा होता है  ..
और मेरी जुबान पर तेरा

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !