Wednesday 10 May 2017

मेरा ये सारा एकांत...









मैं इस एकांत को,
तह-तह समेटता हूँ
इसके मुड़े-तुड़े कोनों पर
इस्तरी लगाके इसकी
सिलवटों को
समतल करता हूँ,
लेकिन हर बार ये एकांत
वापस छितर जाता है
हर कोने में,
क्या इस एकांत को
बंद किया जा सकता है
किसी बोतल में
और फेक दिया जाए
किसी सागर की
अथाह गहराईओं में,
तुम्हारी आँखें भी मुझे
किसी समंदर सा
एहसास दिलाती हैं,
क्या पी पाओगी
मेरा ये सारा एकांत...
बोलो 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !