Tuesday, 9 May 2017

तल्ख़ हुए हैं कई बार कुछ शब्द मेरे,











हा मानता हु मैं 
तल्ख़ हुए हैं कई बार
शायद कुछ शब्द मेरे,
उसी तरह जैसे
कभी-कभी मैं 
झुँझला जाता हूँ
अपने आप से भी,  
खुद से लड़ते हुए
चलता हूँ जिसके 
साथ हमेशा
तुम वही ज़िंदगी हो मेरी...
तुम प्रेरणा हो मेरी...
तुम साधना हो मेरी....  
पर मैं कौन हु तुम्हारा
ये आज तक नहीं 
जान पाया हु मैं 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !