तुम्हारी दो कजरारी
आँखों को झपकाते हुए ,
देखता हु मैं अक्सर
और तुम्हारी उस तस्वीर
में वो रंग खोजता हु मैं
जो रंग मैंने भरे थे
तुम्हारे जीवन में
सागर की सी गहराई लिए
तुम्हारी दो आँखों में ...
एक टक देखते हुए
पूछता हु तुम्हे उन
रंगो का क्या हुआ ?
तुम कहती हो हाँ वो रंग,
अभी भी मेरे पास है और
बहुत प्रिय भी
उन रंगों को चाह कर
भी मेरे जीवन
के केनवास पर नहीं
उतार पायी हु मैं
और कहते कहते तुम्हारी
दो कजरारी आँखें
बरस पड़ती है और देखो
मेरे सारे प्रश्न यु की यु
अधूरे रह जाते है
पोंछते हुए तुम्हारे आँशु ?
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