मैंने कई बार और
कई जगह देखा है
दो ईंटो के बीच से
अंकुर को फूटते हुए
दीवारों पर पीपल
को उगते हुए भी
जो मेरी नज़र में
बस यही कहता है
जंहा जरा से मिटटी थी
जंहा जरा सी धुप थी
जहा जरा सी नमी थी
वहा वहा एक अंकुर
का अस्तित्व था
जहा भी मिटटी धुप
और पानी था ...
ये ही स्वभाव है प्रेम का
और सदा रहेगा
इस्त्री - मिटटी
पुरुष-धुप
प्रेम-पानी
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