Thursday, 11 May 2017

इश्क़ पढ़ती हो...










मैं तुम्हारी
आखों को
अपने हर्फो में
लिखता हूँ,
मेरी कविताओं
में तुम मेरा
इश्क़ पढ़ती हो...
सच, कहु तो
तुम्हारी आखें
ही इश्क़ हैं,
जिनमें खुद के
गुमशुदा
हो जाने की
रपट लिखवा
दी थी मैंने
तकरीबन चार
साल पहले ..

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !