प्रेम नहीं होता
पानी के बुलबुले
की तरह कभी भी
जिसे थोड़ी सी ठेस
लगे और गुम........
और उसे छुपा कर
रखना पड़े एक छोटी सी
कांच की पिटारी में जिसे
जब इक्षा हो देखने की
वो पिटारी खोल लो
और देखो प्रेम को
बुलबुले के स्वरुप में
पर ये दर तो सदा
बना ही रहेगा की
कभी खोलू जब पिटारी
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
इस डर से सदा ही
रखना पड़ेगा गरम हवाओं को
नम अपने आंसुओं से ..........
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