Friday, 19 May 2017

प्रेम नहीं होता बुलबुले की तरह








प्रेम नहीं होता 
पानी के बुलबुले
की तरह कभी भी 
जिसे  थोड़ी सी ठेस 
लगे और गुम........
और उसे छुपा कर 
रखना पड़े एक छोटी सी
कांच की पिटारी में जिसे 
जब इक्षा हो देखने की 
वो पिटारी खोल लो 
और देखो प्रेम को 
बुलबुले के स्वरुप में 
पर ये दर तो सदा 
बना ही रहेगा की 
कभी खोलू जब पिटारी 
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
इस डर से सदा ही 
रखना पड़ेगा गरम हवाओं को
नम अपने आंसुओं से  ..........

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !