Sunday 30 September 2018

चीख कर रो पड़ोगी तुम

चीख कर रो पड़ोगी तुम
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मेरे कहे वो सारे शब्द
शायद तुमने रख दिए 
कंही किसी पुरानी दराज़ 
में छुपा कर जैसे किसी 
मृत व्यक्ति के शरीर से 
उतारकर हम रख देते है 
उसकी पहनी सोने की  
अंगूठी ऐसी ही किसी 
पुरानी दराज़ में छुपा कर
ताकि किसी दिन जब कोई 
साथ ना हो और तुम हो जाओ 
नितांत अकेली तब अकेले में 
तुम आकर खोलोगी उस दराज़
को तो काले कपडे में लपेटे मिलेंगे
तुम्हे मेरे कहे वो सारे शब्द जिसमे
साफ़ साफ़ लिखा होगा मैं तुम्हे खुद
से कंही ज्यादा प्रेम करता हु और जब 
मैं तुम्हारे पास नहीं रहूँगा तब मेरे कहे 
ये शब्द भी तुम्हे उतना ही प्रेम करेंगे 
जितना प्रेम मैं तुम्हे तुम्हारे साथ रहकर
करता था और इतना पढ़कर तुम फिर से 
एक बार चीख-चीख कर रो पड़ोगी ठीक 
वैसे ही जैसे तुम रो पड़ती थी मेरे थोड़े 
से जोर से डांट या डपट देने के बाद !

Saturday 29 September 2018

देह तत्व भेद क्यों है

प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
देह भाषित तृप्ति 
जिसमे तरलाई है 
जिसमे घणद्रव्य है 
जिसमे सम्मलित 
उद्वेलित आकांक्षा है 
प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
देह भेद को खोलने मात्र  
ही जो हर माह प्रकटती है  
वो रक्त की एक अविरल  
चिर परिचित पूजित धारा है
जो स्वयं करती संचित है  
घनद्रव्य को अपनी कोख में
करने सृजन उसी बीज  
के मेल से सृजन जिसका 
प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
जो आज भी कटु सत्य है
की कारक को तो वो वैसे  
भी सदा से ही प्रिय है 
फिर बोलो कर्ता क्यों आज 
भी  इससे कतराता है 
जबकि बाकी सब कहा 
गुणगान इस कौमार्य 
व यौवन का जैसे आज 
भी होता असत्य प्रतीत है 
दूजा देह तत्व भेद होकर 
भी आज अभेद क्यों नहीं है
वो जो तुम्हारा रक्ताभिक 
श्यामल श्रृंगार युक्त है 
जो सख्त होकर भी उदार है 
जो सदैव प्रवेशातुर रहता है  
बनकर नरम खग स्वरुप है
फिर क्यों प्रथम देह तत्व 
भेद बोलो आज भी अभेद है !

Friday 28 September 2018

प्रेम की उम्र तय कर लो !

   प्रेम की उम्र तय कर लो ! 
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आज कल प्रेम की भी उम्र 
तय होने लगी है प्रेम की 
उम्र खुद मोहब्बतें आगे 
बढ़कर तय करने लगी है 
मुक्त होने के लिए इस 
बंधन से जबकि इश्क़ 
उसे वफ़ा के साथ निभा 
रहे होते है अपना अपना 
प्रेम और मोहब्बतें समय
समय पर परखती है 
अपने-अपने इश्क़ को 
अपने अपने तय मापदंडों 
पर ठीक वैसे जैसे प्रत्यंचा 
परखती है खुद पर चढ़े तीर 
का तनाव ताकि जब वो छूटे 
प्रत्यंचा से तो वो इतनी दूर 
जाकर गिरे की जब वो लौटकर 
आये प्रत्यंचा के पास तब तक 
प्रत्यंचा तीर के बंधन से मुक्त 
होकर उड़ चले खुले गगन में 
तलाशने कोई और नया नुकीला 
तीर जो खुद छोड़ा हुआ होता है 
किसी और स्वक्छंद मानसिकता 
वाली प्रत्यंचा के द्वारा उसी मिलती 
जुलती इक्षा के साथ कुछ इस तरह 
आज कल आहे बढ़कर मोहब्बतें 
तय कर रही है उम्र प्रेम की अपने
अपने मापदंडों के अनुसार !

Thursday 27 September 2018

यु तो तुम कभी थी ही नहीं साथ मेरे !

यु तो तुम कभी थी ही नहीं साथ मेरे !
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यु तो तुम कभी थी ही नहीं साथ मेरे
ये तो बस मैं ही था जो बार-बार तुम्हारी 
तमाम गलतियों के भी लौट आता था;
ये तो बस मैं ही था जिसके पास तुम्हारे 
सिवा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था,
ये तो बस मैं ही था जो तुम्हारे बगैर 
सांसें भी ठीक से नहीं ले सकता था,
ये तो बस मैं ही था जिसे लगता था, 
तुम्हारे बगैर ली गयी सांसें कंही मुझमे  
दम भरने की बजाय दम घोट ना दे, 
ये तो बस मैं ही था जो दम घुटने के 
दर से दौड़ा चला आता था तुम्हारे पास,
ये तो बस मैं ही था जो बार-बार तुम्हारी 
तमाम गलतियों के भी लौट आता था;
लेकिन जाने क्यों इतने दर्द सहने के बाद 
अब दम घुटने के दर्द ने ही दम तोड़ दिया है,
तो सोचता हु अब ना लौट कर भी देखु की 
कंही सच में अगर दम घुट जाता है तो 
क्या उसके बाद भी दर्द सिर्फ मुझे होगा ?
या तब तुम भी मेरी ही तरह डर कर मेरे ही 
पास मेरी इस गलती को माफ़ करने आओगी !     

Wednesday 26 September 2018

उम्मीदों में निहित विश्वास

उम्मीदों में निहित विश्वास 

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उम्मीदों के साथ ही 
जिया जा रहा था मैं 
उम्मीदों में ही निहित था  
मेरा अकूत विश्वास भी 
की इस धरा पर वो सब 
सच होता है जिसे हम 
छू पाते है जिसे हम 
देख पाते है जिसे हम 
सुन पाते है पर ना जाने 
क्यों तुम्हे अच्छी तरह 
छू लेने के बाद तुम्हे  
देख लेने के बाद और  
तुम्हे सुन लेने के बाद 
भी अब तक तुम मेरे 
लिए स्वप्न ही बनी हुई 
क्यों हो हां सच में अब 
तक तुम मेरे लिए स्वप्न
ही तो बनी हुई हो !

Tuesday 25 September 2018

कभी महसूस करना तुम

कभी महसूस करना तुम••••••••••••••••

खामोशियाँ कभी मरती नहीं
दर्ज़ रहती है हमेशा हृदय के 
अन्तः स्थल में;

कभी महसूस करना तुम,

खामोशियाँ कभी मरती नहीं
अक्सर जोर-जोर से शोर करती हैं
तन्हाईओं में सन्नाटों में;

कभी महसूस करना तुम, 

तब जब तुम्हारे चारों ओर 
पसरा हुआ हो ढेर सारा सन्नाटा;

कभी महसूस करना तुम,

और हाँ तुम्हारे घर की आलमारी 
में रखी मेरे भावों में लपेट कर भेजी 
मेरी लफ़्ज़ों में बयां मेरी मोहोब्बत; 

कभी महसूस करना तुम,

जैसे ही लगाओगी उन्हें हाँथ 
ये शोर मचाएंगी और तोड़नी पड़ेगी 
तुझे अपनी खामोशियाँ;

कभी महसूस करना तुम,

मैं तो अक्सर रातों को महसूस
करता हु तो मेरी रातें सुलग जाती हैं,
फिर ना तुम आती हो ना ही आती है नींदें; 

कभी महसूस करना तुम, 

सोने के पहले पढ़ना मेरी लिखी 
ये सुलगती हुई सी प्रेम कवितायेँ 
शोर मचाएंगी जोर-जोर से और 
तुम्हे तोड़नी पड़ेगी अपनी खामोशियाँ !

Monday 24 September 2018

आखरी झपकियाँ



आखरी झपकियाँ
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कभी न कभी  
हमसब ज़िन्दगी  
के उस पन्ने पर 
पहुंचेंगे जंहा तकिये 
पर अटकी हमारी 
आखरी झपकियों 
के सहारे हम देख 
रहे होंगे अपनी आखरी 
ख्वाहिशों के सपने
वो सपने यही रहेंगे 
इसी धरा पर चाहे
यंहा हम रहे या ना रहे 
सपने होते ही है अमर
वो कभी नहीं मरते 
हम इंसानो की तरह 
उनकी उम्र ना हम 
तय कर पाते है ना 
ही तय कर पाती है 
विधाता और उन्ही 
अधूरे रह गए सपनो
की खातिर हम सब 
लेते है एक बार फिर 
पुनर्जन्म उन्ही अधूरे
रह गए सपनो को करने
एक बार फिर से पूरा 
हां एक बार फिर से पूरा !

Sunday 23 September 2018

उम्मीद ए जेहन

उम्मीद ए जेहन
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कुछ लम्हे उदास से 
कुछ लम्हे ख़्हुशनुमा से 
जब मिले यादों के कोनो से
तो उन्हें बटोरा दिल ने बड़े 
ही करीने से एक को इस 
कोने से एक को उस कोने से 
और कुछ जो जाकर लिपट से  
गए थे शाम के धुंधले साये से 
और कुछ थे सुबह के सूरज की 
आगोश में धीरे धीरे सुबकते से 
जैसी सांसें उनकी थम सी गयी हो 
फिर दिल ने बड़े करीने से समेटा 
उन्हें जैसे ही अपनी मुठी में और  
टटोला उन्हें तो कुछ की सांसें 
अभी भी जैसे मुस्कुरा रही थी
जैसे एक उम्मीद शायद अब भी 
बाकी थी उनके जेहन में कंही ना 
कंही हां एक उम्मीद उनके जेहन 
में कंही ना कंही अब भी बाकी थी !

Saturday 22 September 2018

सब-कुछ दे दूंगा मैं तुम्हे अपना

सब-कुछ दे दूंगा मैं तुम्हे अपना 
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जब तुम आओगी पास मेरे तो मैं तुम्हे
अपनी भीगी आँखों और तप्त हृदय से   
अपनाकर वो सब-कुछ दे दूंगा जो बचाकर
रखा है अब तक सिर्फ तुम्हारे लिए;

तुम जब सब-कुछ छोड़कर आओगी 
तो अपनी आत्मा को अपने साथ ही  
लाना अपने आने वाले हर एक जन्म 
के लिए और वो भी सिर्फ एक मेरे लिए; 

और मुझे पता है एक दिन तुम जरूर 
आओंगी लेकिन सुनो जब तुम आओ  
तो अपनी ख़ामोशी को साथ ना लाना; 

बस तुम अपनी इन घनेरी जुल्फों को 
खुला रख कर आना और अपनी आँखों 
में थोड़ी नमी भी लेकर आना और आकर 
यंहा जोर जोर से मेरा नाम लेना; 

तब मैं वो सब-कुछ तुम्हे अर्पण कर 
दूँगा जो मैंने एक सिर्फ तुम्हारे लिए 
अब तक बचा कर रखा है; 

मेरी बनायीं प्रेम की कुछ आधी अधूरी 
धुनें कुछ मेरी सिसकती हुई सी आवाज़ें  
और कुछ एक ही जगह ठहरे हुए से कदम; 

जो अब तक तुम्हारे कदमो के इंतज़ार 
में ठिठके हुए थे की कब मिले साथ उन्हें 
तुम्हारे कदमो का और वो चल पड़े अपनी 
मंज़िलों की डगर पर थाम तुम्हारा हाथ;  

और कुछ आंसुओं की बूंदे कुछ उखड़ी हुई 
सी साँसे कुछ अधूरे से शब्द कुछ नम से   
अहसास और थोड़ी सी मेरी खामोशियाँ; 

कुछ तीखे और कुछ मीठे दर्दों के साथ साथ 
कुछ तुम्हारी बेसब्र यादें बस ये सब कुछ 
जो अब तक बचाकर रखा है मैंने 

एक सिर्फ़ तुम्हारे लिये वो सब-कुछ 
दे दूंगा अब तुम्हे ताकि तुम्हे भी तो 
पता चले इतना कुछ सहेज कर रखने 
के लिए जातां कितने करने पड़ते है !  


Friday 21 September 2018

प्रेम भी उतना ही सच्चा है_2

प्रेम भी उतना ही सच्चा है_2
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जब जब मेरा कोई सपना  
टूटता है या फिर मेरा कोई 
सपना बिखरता है मैं उसे  
संभाल कर रखता हु बिलकुल  
अपने दिल के टुकडो की ही तरह  
इतना कुछ होने के बाद फिर शुरू  
होती है मेरी एक अंतहीन यात्रा 
बाहर से भीतर की वो यात्रा जिसमे 
मैं खुद को संभालता हु और स्वयं  
को मिटने से रोकने से रोकता हु 
उसी विश्वास के साथ की मेरा प्रेम 
भी उतना ही सच्चा है जितना सच्चा 
मेरा भगवान पर विश्वास है और फिर 
शुरू होता है एक युद्ध मेरे भाग्य और 
मेरे विस्वास के बीच क्योंकि मुझे  
यकीन होता है की जीत तो निश्चित 
ही छिपी है मेरे उस दृढ़ विश्वास में 
बस उसे पाना है और मैं जुट जाता हु 
अपने विश्वास को सच साबित करने 
में ताकि मैं जी सकूँ ताकि मैं पा सकूँ 
ताकि मैं कह सकूँ की हां देखो मेरा 
विश्वास सच्चा था सच्चा है और सच्चा
ही रहेगा ठीक उतना ही सच्चा जितना 
सच्चा मेरा भगवान पर विश्वास है !

Thursday 20 September 2018

प्रेम भी उतना ही सच्चा है !

प्रेम भी उतना ही सच्चा है !


जब जब मेरा कोई सपना  
टूटता है या फिर मेरा कोई 
सपना बिखरता है मैं उसे  
संभाल कर रखता हु बिलकुल  
अपने दिल के टुकडो की ही 
तरह और उसे उठाकर रखता हूँ 
जैसे कोई नादाँ बच्चा अपना टुटा हुआ 
खिलौना संभाल कर रखता है जब तक 
उसे पता नहीं होता टूटन होती क्या है 
ठीक उसी नादानी के साथ मैं भी उन 
टूटे सपनो को सहेजकर रखता हूँ 
जैसे कांच की कोई बहुत सुन्दर मूरत 
टूटी हो और मैं मन ही मन अपनी 
सहज सरलता से अपने भगवान को 
कहता हु हे भगवान् इसे जोड़ दे प्लीज 
मैं तुम्हारे कल लड्डुओं का भोग लगाऊंगा 
क्योंकि सुना था मैंने भगवान सरलता में बसते है 
और मन ही मन चाहता हु कल वो मूरत मुझे
जुडी हुई मिल जाए ताकि मैं कह सकूँ की 
हां मेरा ये विश्‍वास सच्चा है 
सच्चा था और सच्चा रहेगा 
ठीक वैसे ही सपनो को भी तुम्हारे 
विश्‍वास के भरोसे सहेज रखा है मैंने 
ताकि मैं सबसे कह सकू 
मेरा ये प्रेम भी उतना ही सच्चा है 
जितना सच्चा मेरा भगवान पर विश्वास है !

Wednesday 19 September 2018

भूख

भूख

अपनी पीपाषा के वशीभूत होकर  
मैं हर दिन ही तुम्हारे बारे में कुछ 
ना कुछ तो अवश्य लिखता हूँ 
लेकिन जब भी तुम्हारा ख्याल 
मेरे दिलो-दिमाग से होकर गुज़रता है 
मानो मेरे अन्दर भावों की स्याही की 
बंद पड़ी बोतल खुद ब खुद छलक पड़ती है 
जिसे अपनी कलम में जैसे ही भरने  
बैठता हु मैं वो शब्द उचक-उचक कर 
कागज़ पर स्वतः उतरने लगते है 
वैसे तो मैं हर किसी चीज से जुडी 
बातें लिखता हूँ तुम्हे लेकिन अपने 
लिखे को उतनी शिद्दत से महसूस 
तब तक नहीं कर पाता जब मेरी देह 
के एक एक रोम छिद्र उत्तेजित हो 
खड़े हो गवाही नहीं दे देती उस शिद्दत का 
गोया मेरी कलम की भूख भी अब तुम्हारे 
लिए लिखे शब्दों से ही मिटती है या यु कहु  
की उस भूख को तृप्ति भी तुम्ही से मिलती है !

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_3



तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_3
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तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन 
जिस एक पुरे दिन तुम साथ थी 
मेरे उस दिन कि छोटी से छोटी 
एक-एक बात याद है मुझे;

नन्हा सा हवा का झोंका रूककर 
तुम्हारे उलझे हुए बालों से खेलने 
लगा था जिस मासूमियत से तुमने  
देखा मुझे था अचानक;

और उस झोंकों को था जोर से झंझोड़ा  
झोंका जैसे ठिठक कर खड़ा हो गया था 
कमरे के एक कोने में जाकर और तुम 
खिलखिलाकर हंस पड़ी थी मुझ पर;

और देखते ही देखते फिर अचानक 
जब दिन घिर आया तो भीनी-भीनी 
रोशनियों ने रात के काजल को मिटाया; 

नींद की लुका-छुपी कुछ यूँ चालू हुई 
की भारी होती पलकों को सपनों ने 
जैसे ही हल्के से खटखटाया तब 

उस नींद से थके चेहरे से भी 
मुस्का कर तुमने आँखें बंद  
बंद करते हुए भी मुझको बड़े
ही प्यार से सो जाने को कहा; 

उस एक पुरे दिन जब तुम साथ थी मेरे  
उस दिन कि छोटी से छोटी या हो वो 
बड़ी से बड़ी पर एक-एक बात आज भी 
उसी तरह मुखस्त है मुझे !

Tuesday 18 September 2018

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_2

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_2

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन 
जिस एक पुरे दिन तुम साथ थी 
मेरे उस दिन कि छोटी से छोटी 
एक-एक बात याद है मुझे;

फिर जब महकती उस रात की  
ठण्ड में बादलों ने भी निभाई थी 
अपनी शानदार भूमिका;

बादलों ने खुद को थोड़ा सा  
निचोड़ कर अपनी कुछ बूँदें 
टपकाई तब हवा के झोंके ने 
भी की जैसे छोटी सी शरारत;

नन्हा सा हवा का झोंका रूककर 
तुम्हारे उलझे हुए बालों से खेलने 
लगा था तब जिस मासूमियत से 
तुमने देखा मुझे था अचानक;

और उस झोंकों को था जोर से झंझोड़ा  
झोंका जैसे ठिठक कर खड़ा हो गया था 
कमरे के एक कोने में जाकर और तुम 
खिलखिलाकर हंस पड़ी थी मुझ पर;

उस एक पुरे दिन जब तुम साथ थी मेरे  
उस दिन कि छोटी से छोटी एक-एक 
बात आज भी उसी तरह याद है मुझे!
क्रमशः जारी 

Monday 17 September 2018

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन 

जिस एक पुरे दिन तुम साथ थी 
मेरे उस दिन कि छोटी से छोटी 
एक-एक बात याद है मुझे;
  
कैसे वो रात की गिलहरी 
लकड़ी की खिड़की के किवाड़ 
पर संतुलन बनाते हुए खोज 
रही थी अपना खाना सूंघते हुए;

लग रहा था जैसे मानो  
छुप-छुप कर वो हम दोनों  
की बातें बातें सुन रही थी;

तुमने जैसे ही उसे एक टुक 
देखना शुरू किया दूसरे ही 
पल मानो उसने खुद को भी 
रोका ठीक वैसे ही तुम्हे देखने
के लिए जैसे तुम देख रही थी उसे;

और ऐसा करते हुए जो हल्की सी 
मुस्कान तुम्हारे होंठो से निकलकर 
दोनों रुखसारों पर ठहर गयी थी वो  
रुखसार की मुस्कान आज भी याद है मुझे;

उस एक पुरे दिन जब तुम साथ थी मेरे  
उस दिन कि छोटी से छोटी एक-एक 
बात आज भी उसी तरह याद है मुझे ! 
 क्रमश:...

Sunday 16 September 2018

उफ़ तेरी ये नादानियाँ

उफ़ तेरी ये नादानियाँ 

रोज ही तेरी नादानियों 
को माफ़ करवा देता हु,

भले ही आधी रात हो जाए  
या सुबह की पहली पौ फट 
आए दिल को मनाने में; 

पर सोता हु मैं रोज ही 
तेरी नादानियों को अपने  
दिल से माफ़ करवाकर ही;

फिर सुबह उठकर तुझे ही  
सफाई भी देता हु तन्हा
जागे एक-एक पलों की;

सोचता हु क्यों रातों की 
नींद मुझे यु अकेला छोड़कर 
तेरे पास चली जाती है मेरी 
मिन्नतों पर आखिर; 

सोचता हु गर किसी 
सुबह जो उठ ना पाया
तो ये मेरी रूह फिर से 
भटकती हुई कंही तेरे 
पास ना आ जाए;

इसलिए रोज ही तेरी 
नादानियों को माफ़ करवा 
देता हु अपने दिल से !

Saturday 15 September 2018

कभी देखो दिल पर पड़े निशानों को

कभी देखो दिल पर पड़े निशानों को 
यु घुरघुर कर मत देखो इन्हे
पढ़ना होगा तुम्हे मेरी देह पर 
उभर आये एक-एक निशानों को 
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए;

यु घुरघुर कर मत देखो इन्हे
ये जो दो कानो में छेद के निशान  
देख रहे हो ये तुम्हारी उस ख्वाहिश 
ने दिए है जिनमे चाहत थी अपनी 
जीवन संगिनी के कानो में पहने झुमको 
से आती खनन -खनन की आवाज़      
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए;

यु घुरघुर कर मत देखो इन्हे
ये जो एक मेरी नाम में छेद का  
निशान देख रहे हो तुम ये भी 
तुम्हारी उस इक्षा का परिणाम
है जिसमे तुम देखना चाहते थे 
एक बड़ी सी नथनियाँ पहने हुए मुझे
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए;

यु घुरघुर कर मत देखो इन्हे
ये जो आये दिन मेरे दोनों कानो 
के बिलकुल निचे और गर्दन के ऊपर
कत्थई रंग के चकते देखते हो ये सिर्फ 
एक तुम्हारी ज़िद्द पूरी करने के गवाह है    
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए;
   
यु घुरघुर कर मत देखो इन्हे
ये जो पेडू के निचे से उभरकर
नाभि तक फैलते हुए दिख रहे है 
तुम्हे सुनहरे से कई निशान वो 
तुम्हारे अस्तित्व को विस्तार
देने के लिए किये थे मैंने अनजाने में  
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए;

यु घुरघुर कर देख तो लेते हो मेरी देह
पर उभर आये एक एक निशान को तुम
पर कभी दिल पर पड़े उन अनगिनत 
निशानों को भी देखो ना घुरघुर कर
जो अक्सर शिकायत करते है मुझसे 
की उन्होंने सबसे ज्यादा दर्द सहा और
निशान भी सरेआम ना किये सिर्फ इसलिए
क्योकि प्रेम चुपचाप अपनी पीड़ा छुपा लेता है    
ये सिर्फ निशान नहीं मेरी ज़िन्दगी की कहानी 
के शीर्षक है जो गढ़े है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए !

Friday 14 September 2018

वो खोया हुनर आँखों का

वो खोया हुनर आँखों का  
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वो आँखें जो देखा करती थी 
अपलक तुम्हे वो घुटन के 
दौर से गुजर कर भूल चुकी है
अपलक देखने का हुनर...

वो आँखें जो सजाया करती थी 
हमदोनो के सुनहरे भविष्य के सपने 
वो आँखें अब एक-एक कर बहाया करती है
उन दम तोड़ते सपनो को अश्को के सहारे...

वो आँखें जो सदैव आतुर रहती थी
इस दुनिया को छोड़कर तुम्हारे साथ 
अपनी एक अलग दुनिया बसाने को उन  
आँखों ने अब वीरान से जंगल को बसा लिया है 

वो आँखें जो तुम्हारी आँखों से होती हुई 
जा समायी थी तुम्हारी रूह के रसातल में
वही ऑंखें आज बेसहारा होकर ढूंढ रही है 
उसी तुम्हारी रूह को जिसने उससे वडा किया था 
सदा-सदा के लिए खुद में बसाये रखने का...

वो आँखें जो देखा करती थी 
अपलक तुम्हे वो घुटन के 
उस दौर से गुजर कर भी 
एक बार फिर सीखना चाहती है 
अपना वो खोया हुनर पर सिर्फ तुमसे !

Wednesday 12 September 2018

हरतालिका तीज का चाँद


हरतालिका तीज का चाँद
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सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न 
की आवाज होना चाहता हूँ 
ताकि जब ये मौसम का रूप 
आलाप ले रहा हो तब मैं तुम्हारे 
सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने 
प्रेम का इज़हार कर सकू;

सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का 
वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष 
होना चाहता हूँ ताकी तुम जब  
भी कोई रंग खुद पर डालो तो 
वो रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष 
का एक सबसे खुशनुमा रंग 
लगा नज़र आये ;
  
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न 
सा हरतालिका तीज का वो 
चाँद होना चाहता हु ताकि 
तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे   
सबसे कठोर व्रत का पात्र बन 
बिधाता के द्वारा लिखे अपने 
उस भाग्य पर इठला सकू;
  
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का 
वो चमकता सितारा होना 
चाहता हूँ जो तुम्हारे असीम 
सौंदर्य में जुड़ कर उसकी 
झिलमिलाहट में चार चाँद लगा दे;

सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न 
की वो रक्ताम्भिक लाली 
बनना चाहता हूँ जिसको 
लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि 
की पूज्य ज्वाला समान धधक उठे;

सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की 
वो छाया बनना चाहता हूँ 
जिसकी तलाश में तुम दौड़ 
पड़ो तब जब सूरज की तेज़ 
धूप तुम्हे तपाने की खातिर
तुम्हारे सर पर मंडराने लगे 
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश 
में दौड़ कर मेरी ही छांव में आ बैठो;
   
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो 
धूप भी बनना चाहता हूँ जिसमे 
तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने 
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य 
को इधर उधर तलाशो;
  
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का 
वो एकत्व बनना चाहता हु जिसके  
सामर्थ और शक्ति से मेरा और 
तुम्हारा एकत्व गूँथा जाए ।

Tuesday 11 September 2018

क्यों तुम मुझे बहुत याद आती हो !


क्यों तुम मुझे बहुत याद आती हो !
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तुम्हे भुलाने की बहुत सारी वजहें है 
आज भी मेरे पास पर भी जब 
जीने की वजह की बात आती है   
तब तुम मुझे बहुत याद आती हो
वैसे तो इश्क़ के नाम में ही लाखो
दर्द छुपे है पर मुझे जब भी बेइंतेहा
प्यासी मुहब्बत की याद आती है 
तब तुम मुझे बहुत याद आती हो
यु तो तुम्हारा नाम भी अपनी जुबां
पर ना लाने की हज़ार वजहें थी 
मेरे पास पर जब भी तुम पर लिखी  
मेरी कोई प्रेम कविता मैं अकेले में 
गुनगुनाकर अपनी रूह को सुनाता हु
तो तुम मुझे बहुत याद आती हो
यु जब भी किसी रूठी मासूका को 
किसी मासूक को मानते देखता हु 
तो तुम मुझे बहुत याद आती हो
यु तो खुद को मिटा देने की लाख 
वजहें दे जाती हो जाते जाते तुम 
मुझे पर जब तुम्हारे लौट आने की 
बात याद आती है उस पल ना जाने 
क्यों तुम मुझे बहुत याद आती हो !

Monday 10 September 2018

चित्ताकर्षक दिनकर सा प्रेम

चित्ताकर्षक दिनकर सा प्रेम 
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प्रभात काल के चित्ताकर्षक 
दिनकर सा है ये मेरा प्रेम
जो मेरी आकांक्षा के अभीष्ट 
का रक्तवर्ण लिए निकलता है 
प्रतिदिन तुम्हारे अस्तित्व के 
आसमान से अपनी धरा को 
हरहरी करने की अभिलाषा लिए 
जिसके उमंगो का फाल्गुन गाढ़ा 
हरित है तभी तो कोई और रंग 
चढ़ा ही नहीं तुमपर उस रंग में
रंगने के बाद क्योकि वो रंग ही 
क्या रंग है जिसके रहते चढ़ जाए
कोई और दूजा रंग या वो कोई रंग
है भला जो धोने से फीका पड़ जाए
अब मैं रंगूंगा तुम्हे अपने सुर्ख 
रक्तवर्ण से जो कभी छूटेगा नहीं 
आओगी तुम मेरे घर इसी सुर्ख 
रक्तवर्ण रंग के जोड़े को लपेटकर
और जायेंगे भी दोनों एक साथ इसी 
रक्तवर्ण के एक जोड़े में लिपटकर 
ये रंग जो जन्मो जन्मो तक रहेग़ा 
अक्षुण्ण और रंगो के अनगिनत 
समंदर समाये होंगे मेरी उस छुवन में
जो तुम अपने कपोलों पर हर दिन फिर
हर दिन महसूस करोगी तब सैकड़ों 
इंद्रधनुष सिमट आएंगे तुम्हारी कमनीय 
काया पर और मैं बजाऊंगा उस दिन चंग 
और तुम गाना अपने प्रेम का अमर फाग 
फिर भी गर ये दुनिया पूछ ले तुमसे तो 
तो नज़र निचे झुकाने की जगह अपना 
सर उठा कर कहना ये रक्तवर्ण रंग डाला 
है मेरे पिया ने मुझ पर !

Sunday 9 September 2018

अपनी गोद में सुलाना उसे !

अपनी गोद में सुलाना उसे !
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सुनो आज तुम चाँद को 
बिंदी बनाकर मत लगाना
और अपने आंचल में सितारे
भी मत टांकना और सुनो उससे 
आज अपनी देह के लिए नयी नयी
उपमाएं तो बिलकुल भी मत मांगना
क्योकि दिन भर की भाग दौड़ से थका
हारा वो जब लौट कर आये तुम्हारे पास 
तो उसे प्यार से अपनी गोद में लेटा लेना
और मलना उसके बालों में जैतून का तेल
अपनी अंगुलियों के पोरो से अच्छी तरह 
और उसकी पसंद का वो सुन्दर सा गीत 
गुनगुनाकर उसे सुला लेना किसी नादाँ 
हठी और ज़िद्दी बच्चे की तरह लगा कर 
अपने सीने से गहरी नींद ताकि उसकी 
भी एक सुबह हो तुम्हारी हर सुबह की 
तरह सुहानी ऐसा कभी कभी किया करो 
क्योंकि जो तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों 
के भविष्य के लिए दुनिया की खाक 
छानता है उसे भी जरुरत होती है 
महसूस तुम्हारे इस स्नेह की       
सुनो आज तुम चाँद को बिंदी 
बनाकर मत लगाना भले ही ! 

Saturday 8 September 2018

मुठ्ठी भर मिट्टी



मुठ्ठी भर मिट्टी
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मैंने सोचा तुम
फूल सी हो तो  
तुम्हे फूल बहुत 
पसंद होंगे और  
इसीलिए मैं अपने
पसंद के ढेर सारे 
फूलों के बीज लेकर 
आ गया किन्तु तुम्हारे 
पत्थर से दिल को देखकर 
अब सोचता हूँ मैं इन बीजों 
का क्या करूं अच्छा होता 
मैं बीजों के साथ-साथ अपनी  
मुठ्ठी भर मिट्टी मेरी रूह की भी 
लाता और अँजुरी भर हथेली में 
अपने भावों का जल मेरी आँखों 
से निकाल लाता फिर उन बीजों 
को अपनी हथेली की ऊष्मा देकर 
तुम्हारी आँखों के सामने फूल बनाता  
तो शायद तुम्हारा ये पत्थर दिल पसीज जाता 
तुमसे मिलकर ही जाना फूल सी दिखने वाली 
हृदय भी फूल सा रखती हो ये जरुरी तो नहीं ! 

Friday 7 September 2018

हठी और निर्भीक

हठी और निर्भीक
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उसने जिस प्रेम 
की कल्पना की 
थी ख्वाबों में उस
प्रेम की पूर्णताः को 
भी उसने एक अंगूठी 
और सात अग्नि के फेरों 
तक ही सीमित कर दिया 
अपनी उसी कल्पना में
पर मेरा प्रेम था उसकी 
कल्पना से कंही ज्यादा 
निर्भीक और हठी जिसमे 
ना तो किसी का डर था 
ना ही वो सुनता था अपने
प्रेम के लिए दूसरों के द्वारा 
कहे गए कोई शब्द वो तो 
बिलकुल आवरण सा था या 
यु कह लो आवरण ही तो था
उसका जो छाया रहता था उसके  
चारोँ ओर वक़्त और बे वक़्त भी
पर उसने तो समझा था बस उसे 
एक अंगूठी और अग्नि के साथ
लिए सात फेरे बस नहीं समझ पायी
वो निर्भीक है मेरा प्रेम  जो बहा ले जायेगा 
मुझे मेरे अवसान की ओर !    

Thursday 6 September 2018

झूठा करार


झूठा करार 
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यु आधी-अधीर 
रात को जब करवटें 
बेहद परेशां करती है 
मुझे तब अक्सर ही   
नीँदों में उठकर ये मैं   
कई बार खुद से ही यु 
अपने दिल पर जोर-जोर 
से दस्तक देता हु ताकि 
करवटों को लगे तुम आ 
गयी हो पास मेरे और फिर  
जैसे ही उनको मिलता है थोड़ा 
करार मैं उस दस्तक दिए हुए 
खुद के दिल से खुद-ब-खुद बाहर 
निकल आता हु कुछ ऐसी सी मोहोब्बत 
से इश्क़ किया है मैंने अक्सर जिसमे अपनी 
ही बेक़रार करवटों को अपनी ही थपकियों से 
झूठा करार दिलाकर इस तरह से सुलाया है मैंने ! 

Wednesday 5 September 2018

लफ़्ज़ों के लिहाफ

लफ़्ज़ों के लिहाफ 
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कुछ लफ्ज़ 
ज़िन्दगी के सिर्फ  
खुद से ही पढ़े जाते हैं
वही लफ्ज़ जो दिल की 
गहराइयों में दब जाते है 
कभी कुछ सोचकर कभी   
वो दब जाते है अपनी ही 
भूलवश जैसे कुछ भूली हुई   
सभ्यताएं नजर आती है सिर्फ  
जमीनों के खोदने से ठीक वैसे ही
कुछ लफ्ज़ जो दबे हैं ज़िन्दगी के उन 
पन्नो में जिन्हे वर्जित कर रखा है तुमने 
दुनिया के कानो में पुकारे जाने से ये कहकर
की जब तक वो लफ्ज़ सच का लिहाफ ना ओढ़ ले 
लेकिन तुमने तो पढ़े है ना वो लफ्ज़ फिर क्यों पड़े है 
वो दफ़न अब तक बोलो क्या खता है उन लफ़्ज़ों की बताओ 
कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते हैं आखिर क्यों ?

Tuesday 4 September 2018

मेरी पगलाई सी रूह



मेरी पगलाई सी रूह
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बेहद शर्द कंपकपाने
वाली रात में मेरे घर के 
बिलकुल सामने वाला पेड़ 
जिसके अधिकतर पत्तो के 
झड़ जाने के बावजूद भी मेरी  
नज़र टिकी है एक उस हरे पत्ते पर 
वो हरा पत्ता अभी अभी ऊगा है 
उसकी एक डाल पर और वो 
बड़ा हो रहा है सहते हुए शर्द 
और ज़र्द हवा और उसके साथ
मेरा एक ख्वाब भी पल रहा है  
उस खिलते और बड़े होते हरे पत्ते के 
के साथ-साथ और एक चाहत भी जगी है   
की अब बस उस एक हरे पत्ते के गिरने के 
पहले आ जाए हरियाली की बहार और  
उस पेड़ पर वैसी ही हरीतिमा छा जाए 
जैसी तुम्हारी यादो से बाबस्ता होती है
मेरी हर रात और तुम्हारी मुस्कानो से 
सराबोर होती है मेरी पगलाई सी रूह 
बेहद शर्द कंपकपाने वाली रात में....  


Saturday 1 September 2018

याद सिसकती रहती है !

याद सिसकती रहती है !
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तंग आकर तुम्हारी 
यादो की पिघला देने 
वाली मनुहारों से अब 
मैंने अपने ज़हन की 
कोठरी के दरवाज़े को 
मज़बूती से बंद कर दिए 
लेकिन कल रात फिर 
आयी थी वो तेरी याद 
रोती रही और गिड़गिड़ाती 
भी रही और उसकी हिचकियों 
की आवाज़ें मेरे कानो में पूरी  
रात गूंजती रही और अंदर 
उस जहन से लगी तुम्हारी 
याद पूरी की पूरी रात सिसकती 
रही इस तरह अब वो आती है 
जिसे कभी उस दरवाज़े की 
चाबी दे रखी थी अब वो मुझे 
सँभालने अक्सर ही रातो को 
इस तरह आती है पर अब 
दरवाज़े खुलते नहीं मेरी 
चाहत के क्योंकि उसने 
तोडा था बड़े ही सलीके से 
उस अनुराग से भरे दिल को !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !