Saturday, 8 September 2018

मुठ्ठी भर मिट्टी



मुठ्ठी भर मिट्टी
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मैंने सोचा तुम
फूल सी हो तो  
तुम्हे फूल बहुत 
पसंद होंगे और  
इसीलिए मैं अपने
पसंद के ढेर सारे 
फूलों के बीज लेकर 
आ गया किन्तु तुम्हारे 
पत्थर से दिल को देखकर 
अब सोचता हूँ मैं इन बीजों 
का क्या करूं अच्छा होता 
मैं बीजों के साथ-साथ अपनी  
मुठ्ठी भर मिट्टी मेरी रूह की भी 
लाता और अँजुरी भर हथेली में 
अपने भावों का जल मेरी आँखों 
से निकाल लाता फिर उन बीजों 
को अपनी हथेली की ऊष्मा देकर 
तुम्हारी आँखों के सामने फूल बनाता  
तो शायद तुम्हारा ये पत्थर दिल पसीज जाता 
तुमसे मिलकर ही जाना फूल सी दिखने वाली 
हृदय भी फूल सा रखती हो ये जरुरी तो नहीं ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !