Friday 21 September 2018

प्रेम भी उतना ही सच्चा है_2

प्रेम भी उतना ही सच्चा है_2
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जब जब मेरा कोई सपना  
टूटता है या फिर मेरा कोई 
सपना बिखरता है मैं उसे  
संभाल कर रखता हु बिलकुल  
अपने दिल के टुकडो की ही तरह  
इतना कुछ होने के बाद फिर शुरू  
होती है मेरी एक अंतहीन यात्रा 
बाहर से भीतर की वो यात्रा जिसमे 
मैं खुद को संभालता हु और स्वयं  
को मिटने से रोकने से रोकता हु 
उसी विश्वास के साथ की मेरा प्रेम 
भी उतना ही सच्चा है जितना सच्चा 
मेरा भगवान पर विश्वास है और फिर 
शुरू होता है एक युद्ध मेरे भाग्य और 
मेरे विस्वास के बीच क्योंकि मुझे  
यकीन होता है की जीत तो निश्चित 
ही छिपी है मेरे उस दृढ़ विश्वास में 
बस उसे पाना है और मैं जुट जाता हु 
अपने विश्वास को सच साबित करने 
में ताकि मैं जी सकूँ ताकि मैं पा सकूँ 
ताकि मैं कह सकूँ की हां देखो मेरा 
विश्वास सच्चा था सच्चा है और सच्चा
ही रहेगा ठीक उतना ही सच्चा जितना 
सच्चा मेरा भगवान पर विश्वास है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !