तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन
जिस एक पुरे दिन तुम साथ थी
मेरे उस दिन कि छोटी से छोटी
एक-एक बात याद है मुझे;
कैसे वो रात की गिलहरी
लकड़ी की खिड़की के किवाड़
पर संतुलन बनाते हुए खोज
रही थी अपना खाना सूंघते हुए;
लग रहा था जैसे मानो
छुप-छुप कर वो हम दोनों
की बातें बातें सुन रही थी;
तुमने जैसे ही उसे एक टुक
देखना शुरू किया दूसरे ही
पल मानो उसने खुद को भी
रोका ठीक वैसे ही तुम्हे देखने
के लिए जैसे तुम देख रही थी उसे;
और ऐसा करते हुए जो हल्की सी
मुस्कान तुम्हारे होंठो से निकलकर
दोनों रुखसारों पर ठहर गयी थी वो
रुखसार की मुस्कान आज भी याद है मुझे;
उस एक पुरे दिन जब तुम साथ थी मेरे
उस दिन कि छोटी से छोटी एक-एक
बात आज भी उसी तरह याद है मुझे !
क्रमश:...
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