Sunday 16 September 2018

उफ़ तेरी ये नादानियाँ

उफ़ तेरी ये नादानियाँ 

रोज ही तेरी नादानियों 
को माफ़ करवा देता हु,

भले ही आधी रात हो जाए  
या सुबह की पहली पौ फट 
आए दिल को मनाने में; 

पर सोता हु मैं रोज ही 
तेरी नादानियों को अपने  
दिल से माफ़ करवाकर ही;

फिर सुबह उठकर तुझे ही  
सफाई भी देता हु तन्हा
जागे एक-एक पलों की;

सोचता हु क्यों रातों की 
नींद मुझे यु अकेला छोड़कर 
तेरे पास चली जाती है मेरी 
मिन्नतों पर आखिर; 

सोचता हु गर किसी 
सुबह जो उठ ना पाया
तो ये मेरी रूह फिर से 
भटकती हुई कंही तेरे 
पास ना आ जाए;

इसलिए रोज ही तेरी 
नादानियों को माफ़ करवा 
देता हु अपने दिल से !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !