उफ़ तेरी ये नादानियाँ
रोज ही तेरी नादानियों
को माफ़ करवा देता हु,
भले ही आधी रात हो जाए
या सुबह की पहली पौ फट
आए दिल को मनाने में;
पर सोता हु मैं रोज ही
तेरी नादानियों को अपने
दिल से माफ़ करवाकर ही;
फिर सुबह उठकर तुझे ही
सफाई भी देता हु तन्हा
जागे एक-एक पलों की;
सोचता हु क्यों रातों की
नींद मुझे यु अकेला छोड़कर
तेरे पास चली जाती है मेरी
मिन्नतों पर आखिर;
सोचता हु गर किसी
सुबह जो उठ ना पाया
तो ये मेरी रूह फिर से
भटकती हुई कंही तेरे
पास ना आ जाए;
इसलिए रोज ही तेरी
नादानियों को माफ़ करवा
देता हु अपने दिल से !
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